संवेदना
इंसान संवेदना को ईश्वर प्रदत गुण के रूप में पाता है,
पर कहते हैं पत्थर हो जाओ तो जीना आसान हो जाता है।
पत्थर हुए तो जाना कि वहाँ तो चोट हर रोज़ पड़ती है।
हथोड़े की हर चोट पर ज़िंदगी रोज़ कण-कण झड़ती है।
हर कोई पत्थर के लिए छेनी हथोड़ा लिए खड़ा है इस जहाँ में,
इंसान ही नहीं मौसम की मार भी पत्थर पर है फ़िज़ा में।
हर कोई पत्थर पर छेनी हथोड़ा चलाता है,
पत्थर को इच्छा अनुसार तराशना चाहता है।
भला हो ईश्वर का पत्थर को संवेदना नहीं दी,
वरना आसान होना तो दूर ज़िंदगी एक दिन भी ना चलती।
ईश्वर ने जिसको जो गुण बख़्सा उसके लिए वो ही सही है,
पड़ने वाली छेनी हथोड़े की हर चोट तो असीम पीड़ा से भरी है।
ईश्वर ने संसार में भेजने से पहले इंसान को सम्पूर्ण बनाया है,
ईश्वर द्वारा निर्मित इंसान में परिवर्तन तो मात्र सांसारिक माया है।
ईश्वर ने संवार कर भेजा है, आगे कोई गुंजाइश नहीं है,
जिस को जो गुण बख़्सा है उसके लिए वो ही सही है।