संवेदना
भूल गये संवेदना, स्वार्थ भरा व्यवहार ।
तर्क शील मानव हुआ, अपने तक परिवार।।
पति पत्नी संतान हित,जिते कुछ इंसान।
सिमट गई संवेदना,हृदय बसा अभिमान।।
मान प्रतिष्ठा के लिए,करता खोटे काम।
धोखे अरु पाखंड से , मानव अब बदनाम।।
देख दुखी नजदीक में, मानव करे विचार।
अधिक अधिकतम और हो,बिके सभी घर द्वार ।।
बना हितैषी चाहता, लाभ उठाता रोज।
झूठ दिखा संवेदना,ठग जैसी मन खोज ।।
राजेश कौरव सुमित्र
हृदय भाव संवेदना,सबके रहती पास।
करें उपेक्षित जो इसे,जिंदा समझो लाश।।
कभी कभी संवेदना,मन में होती क्षीण ।
दुष्टी पापी भाव में, जिनका हृदय प्रवीण ।।
महा भारत युद्ध कथा,कौन अभिमन्यु साथ।
मरी यहाँ संवेदना ,हृदय रखा सब हाथ।।
घायल पक्षी देखकर,उमड़ा हृदय विचार।
उठा लिया सिद्धार्थ ने,किया बहुत ही प्यार।।
जिसके मन सदभावना,संवेदी व्यवहार।
जग में मिलती सफलता,करता जो उपकार।।