संवेदना बदल गई
संवेदना बदल गई
नये रूप में हो गई
दुःख दर्द के फोटो
मोबाइल से खीचते ।
सहयोग करना दूर
फोटो अब मशहूर
भेज भेज ग्रुपो पर
वाह वाही ही लूटते।
तड़प व कराह की
दुर्घटनाएं सड़क की
खबर चाहे मौत की
मोबाइल पर देखते ।
कष्ट में अगर पडोसी
चहरे पर नहीं उदासी
कमियों को बता बता
दाँत सब निपोरते ।
कभी नही करी बात
भेदभाव बनती जात
मोबाइल पर संवेदना
रोज रोज ही भेजते।
दरवाजे पर ताला डाल
घूमते हैं बाजार मिल
मांगने न आ आवे कुछ
दिन रात यह सोचते ।
राजेश कौरव सुमित्र