संवेदनहीनता
#मन_बेचैन_हुआ!!
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मानवता मे देख गिरावट,
मन बेचैन हुआ!
रिश्तों से मिट गयी तरावट,
मन बेचैन हुआ!!
नैतिकता शरशैय्या लेटी
माँ को आँख दिखायें बेटी।
नियत बेंच मनुज देखो अब-
भरने लगा है धन से पेटी।
प्रेम गरल सङ्ग देख मिलावट,
मन बैचैन हुआ।
मानवता मे देख गिरावट,
मन बेचैन हुआ!!
द्वेष दगा अब संबंधों में,
वफ़ा नहीं है अनुबंधों में।
आज वही है सगा- सहोदर –
जो संगी गोरखधंधों में।
व्यवहारों में देख थकावट,
मन बेचैन हुआ।
मानवता मे देख गिरावट,
मन बेचैन हुआ!!
सब संवेदन हीन हुए हैं,
मन से दुर्जन दीन हुए हैं।
परहित का बस पहन मुखौटा-
दुष्कर्मी संगीन हुए हैं।
सत्यनिष्ठता अंत की आहट,
मन बेचैन हुआ।
मानवता मे देख गिरावट,
मन बेचैन हुआ!!
द्वंद्व छिड़ा है रक्त-रक्त में,
स्वार्थ छिपा है भक्त-भक्त में
किसने विष घोला है ऐसे-
समझ न आए आज वक्त में।
कुत्सित बर्बर सी अकुलाहट,
मन बेचैन हुआ।
मानवता मे देख गिरावट,
मन बेचैन हुआ!!
✍️ संजीव शुक्ल ‘सचिन’