संविधान मांग रही है
? संविधान मांग रही है✍?
पहले नवरात्रे की भेंट
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अपनी अस्मत का ,देवी से दान मांग रही है ।
नवरात्रों में नारी, स्वाभिमान मांग रही है।।
पूछ रही है देवी मां से, रो-रो यही बात
तेरी बेटी से क्यूं दुनिया, जान मांग रही है।।
नौ दिन तेरी पूजा होती, नारी के सम्मान में।
नौ दिन बाद उन्हीं भक्तों से, सम्मान मांग रही है।।
तरह-तरह से वस्त्र हरण है, तरह- तरह से अय्याशी।
अपने आंचल का मां से, वरदान मांग रही हैं ।।
जिस अस्मत का रहता है, गर्व हमेशा नारी को।
गली -गली हर मोड़ पै वो, अभिमान मांग रही है।।
भोली है नादान है अब भी, पढ़ी लिखी हो कर भी ये।
बेजान मूरत से अपनी ,जान मांग रही है।।
लूटी इज्जत लेकर मंदिर में, पहुंची वो रोते-रोते ।
देवी मां से लूटा हुआ, सम्मान मांग रही है।।
बहन- बेटी वाले हैं हम,हम ही लूटते हैं अस्मत।
आजादी में जीने को बेटी ,शान मांग रही है।।
मैं कहता हूं फूलन बन जा, छोड़ तू मंदिर के द्वारे ।
वही जान डर कर भागेगी ,जो जान मांग रही हैं ।।
अबला नहीं तू सबला है, फूलन देवी जैसी बन ।
क्यूं पत्थर आगे रो- रो, पहचान मांग रही है।।
कितनी चोरी,कितनी अस्मत, लूटीं जाती मंदिर में ।
जिंदा है वो नारी “सागर”, जो संविधान मांग रही है।।
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बेख़ौफ़ शायर ,गीतकार ,लेखक, चिंतक
डॉ. नरेश कुमार “सागर”
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नमो बुद्धाय? जय भीम?? जय संविधान✍?
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