संविधान की मनहरण
संविधान देश का है
मानता विधान नहीं
उनका सम्मान तुम्हे
छोड़ देना चाहिये।
लेखनी की धार जरा
और जोरदार बने
लेखनी की धार अब
मोड़ देना चाहिये।
देश के खिलाफ काम
करता है द्रोह का जो
सर देशद्रोही का तो
फोड़ देना चाहिये।
चूहे के समान ही जो
देश को कुतरते हैं
ऐसे तंत्रियों के दन्त
तोड़ देना चाहिये।।