संविधान की आठवीं अनुसूची में किसी बोली को शामिल होने से हिंदी और अन्य भाषा को होने वाली क्षति –
1 . किसी बोली को आठवीं अनुसूची में शामिल होने से हिंदी भाषियों की जनसंख्या में से उस भाषियों की
जनसंख्या घट जाएगी. जो संविधान के 8 अनुसूची मे कुछ भाषा को शामिल करने से हो चुका है की संख्या हिंदी में से घट चुकी है.
2 स्मरणीय है कि सिर्फ संख्या-बल के कारण ही हिंदी इस देश की राजभाषा के पद पर प्रतिष्ठित है. यदि यह संख्या घटी तो राजभाषा का दर्जा हिंदी से छिनते देर नहीं लगेगी फिर इस तरह भारत का विकास कभी नहीं हो सकता है अतः बोली और भाषाओं राजनीति करने वाले लोगो पर कडी कानून करवाई होनी चाहिऐ ऐसे राजनीति करने वाले लोगो जो हमारे हिन्दी और अन्य भाषाओं तोड़ने प्रयास करते है और गंदी राजनीति करते है जो लड़ाई कभी खत्म नहीं होगी । नित अन्य बोली लड़ाई लडने के लिऐ तैयार होगी
एक उदाहरण जाने
भोजपुरी,अंगिका और खोरठा,राजस्थानी अन्य किसी
बोली को संविधान के ८ सूची में रखा गया तो अलग होते ही ब्रजी, अवधी, छत्तीसगढ़ी, बुंदेली, मगही,ब्रजिका आदि सब अलग होंगी. उनका दावा भोजपुरी,अंगिका,
खोरठा से कम मजबूत नहीं है. ‘रामचरितमानस’, ‘पद्मावत’, या ‘सूरसागर’ जैसे एक भी ग्रंथ भोजपुरी,अंगिका ,खोरठा में नहीं हैं.
एक उदाहरण से जाने संविधान के हिन्दी भाषा को छोड़ कर अन्य भाषा का भी क्षति
१ मैथिली भाषा का क्षति होगा जब अंगिका, ब्रिजिका,खोरठा,सूयापूरी को संविधान के ८ अनुसूची स्थान दिया गाया फिर कुछ साल के बाद मैथिली बोली में ही नई बोली निर्माण होगा और फिर भाषा की राजनीति होगी इसी तरह भाषा भाग बटकर खत्म हो जाऐगा इस तरह माने तो आने वाले समय मे सहरसा के मैथिली नई बोली सहित्यकार सहरसा वासी कहेगे मेरा इतिहास पूरना है और सहित्य भी जैसे राहुल झा हमारे भाषा के साहित्यकार है मै विधापति नहीं मानता हूँ ओ मैथिली महाकवि है ये अभी हो रही है सभी मुख्य भाषा मे अतः भाषा बचाने एक नियम कानून बनना चाहिऐ
ज्ञान के सबसे बड़े स्रोत विकीपीडिया ने बोलने वालों की संख्या के आधार पर दुनिया के सौ भाषाओं की जो सूची जारी की है उसमें हिंदी को चौथे स्थान पर रखा है. इसके पहले हिंदी का स्थान दूसरा रहता था !हिंदी को चौथे स्थान पर रखने का कारण यह है कि सौ भाषाओं की इस सूची में अवधी, मारवाड़ी, छत्तीसगढ़ी, ढूंढाढी, हरियाणवी,भोजपुरी,ब्रजभाषा, मगही और अन्य बोली को शामिल किया गया है.
साम्राज्यवादियों,राजनेता द्वारा हिंदी की एकता को खंडित करने के षड्यंत्र का यह ताजा उदाहरण है और इसमें विदेशियों के साथ कुछ स्वार्थांध देशी जन भी शामिल हैं.ऐसे कुछ साहित्यकार ने पहले भी हिन्दी और अन्य भाषाओं तोड़ने प्रयास करके जैसे राहुल सांकृत्यायन मैथिली के बोली को बार बार भाषा बोल कर
हमारी मुख्य लड़ाई अंग्रेज़ी के वर्चस्व से है. अंग्रेज़ी हमारे देश की सभी भाषाओं को धीरे-धीरे लीलती जा रही है. उससे लड़ने के लिए हमारी एकजुटता बहुत जरूरी है उसके सामने हिंदी ही तनकर खड़ी हो सकती है क्योंकि बोलने वालों की संख्या की दृष्टि से वह आज भी देश की सबसे बड़ी भाषा है और यह संख्या-बल बोलियों के जुड़े रहने के नाते है. ऐसी दशा में यदि हम बिखर गए और आपस में ही लड़ने लगे तो अंग्रेज़ी की गुलामी से हम कैसे लड़ सकेंगे?आठवीं अनुसूची में शामिल होने के बाद उस बोली के कबीर को हिंदी के कोर्स में हम कैसे शामिल कर पाएंगे? क्योंकि तब कबीर हिंदी के नहीं, सिर्फ बोली भाषा के कवि होंगे. क्या कोई कवि चाहेगा कि उसके पाठकों की दुनिया सिमटती जाए
भोजपुरी घर में बोली जाने वाली एक बोली है. उसके पास न तो अपनी कोई लिपि है और न मानक व्याकरण. उसके पास मानक गद्य तक नहीं है. किस भोजपुरी के लिए मांग हो रही है? पटना की, सिवान की या छपरा की ?
कमज़ोर की सर्वत्र उपेक्षा होती है. घर बंटने से लोग कमज़ोर होते हैं, दुश्मन भी बन जाते हैं. भोजपुरी के अलग होने से भोजपुरी भी कमज़ोर होगी और हिंदी भी.
इतना ही नहीं, पड़ोसी बोलियों से भी रिश्तों में कटुता आएगी और हिंदी का इससे बहुत अहित होगा. मैथिली का बोली का अपने पड़ोसी मैथिली बौली अंगिका,ब्रजिका,खोरठा से विरोध सर्वविदित है.
अगर इन बोलियों को अलग कर दिया गया और हिंदी का संख्या-बल घटा तो वहां की राज्य सरकारों को इस विषय पर पुनर्विचार करना पड़ सकता है कि वहां हिंदी के पाठ्यक्रम जारी रखे जाएं या नहीं.
इतना ही नहीं, राजभाषा विभाग सहित केंद्रीय हिंदी संस्थान, केंद्रीय हिंदी निदेशालय अथवा विश्व हिंदी सम्मेलन जैसी संस्थाओं के औचित्य पर भी सवाल उठ सकता है.
इस बोली को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल होते ही इन्हें स्वतंत्र विषय के रूप में यूपीएससी के पाठ्यक्रम में शामिल करना पड़ेगा. इससे यूपीएससी पर अतिरिक्त बोझ तो पड़ेगा ही, देश की सर्वाधिक प्रतिष्ठित इस सेवा का स्तर भी गिरेगा.
परीक्षा के लिए उस भाषा आदि को विषय के रूप में चुनने वालों के पास सीमित पाठ्यक्रम होगा और उनकी उत्तर पुस्तिकाएं जांचने वाले भी गिने चुने स्थानीय परीक्षक होंगे.अनुभव यही बताता है कि भाषा को मान्यता मिलने के बाद कुछ महानुभाव अपनी भाषा संस्कृति बचाने के लिऐ ही अलग राज्य की मांग होने करने लगते है. मैथिली को सन् 2003 में आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया और उसके बाद से ही मिथिलांचल की मांग की जा रही है
एक उदाहरण से समझे
किसी बोली को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग भयंकर आत्मघाती है. डॉ. राजेन्द्र प्रसाद और स्व. चंद्रशेखर जैसे महान राजनेता तथा आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ,रामधारी दिनकर जैसे महान साहित्यकार कभी हिन्दी और अन्य भाषा को कमजोर नहीं करना चाहते थे आज थोड़े से लोग, अपने निहित स्वार्थ के लिए बीस करोड़ के प्रतिनिधित्व का दावा करके देश को धोखा दे रहे है.
हृदय करता है मै भी मैथिली,बंगाली के कुछ सहित्यकार से नाराज हो कर एक नई बोली निर्माण करू आप भी करे
मैं भी करता हूँ यही राजनीति होगी धीरे धिरे मुख्य भाषा और मेरी बोली मिट जाऐगी अतः कानून होनी चाहिए
कुछ वर्तमान के प्रसिद्ध साहित्यकार और भारतीय का विचार
१ बोलियों को भाषा का दर्जा देने से हम बँटते चले जायेंगे क्योंकि बोली तो हर दो कोस पर बदल जाती है। हिंदी संकुचित होती जायेगी।(बिनू भटनागर, लखनऊ)
मौलिक
© श्रीहर्ष आचार्य