संविदा की नौकरी का दर्द
जितनी उम्र गँवाई हमने, उसका हमें हिसाब चाहिए
ऐ गूँगी बहरी सरकारों, दे दो हमें जवाब चाहिए
नाम संविदा का देकर तुम
जनमानस को लूट रहे हो
दिवास्वप्न क्यों रोज दिखाकर
जीवन में विष कूट रहे हो
वक्त हमारा वापस दे दो, और न झूठे ख़्वाब चाहिए
ऐ गूँगी बहरी सरकारों, दे दो हमें जवाब चाहिए
यहाँ किसी को पुआ खिलाते
और किसी को रखते भूखा
वही काम करते हैं हम भी
किंतु गला रहता है सूखा
स्वर्ण सरीखा काम करें तो मिट्टी नहीं जनाब चाहिए
ऐ गूँगी बहरी सरकारों, दे दो हमें जवाब चाहिए
काश! तुम्हारी नज़रों में भी
संविधान की समता होती
जनता का दुख जान सको तुम
माता जैसी ममता होती
जनता पुत्र समान लिखा है माँगो अगर किताब चाहिए
ऐ गूँगी बहरी सरकारों, दे दो हमें जवाब चाहिए
धनाभाव के बीच यहाँ पर
सबको रोता छोड़ दिया है
रोज रोज अपमानित होकर
कितनों ने दम तोड़ दिया है
तुम तो पत्थर से लगते हो लेकिन इधर गुलाब चाहिए
ऐ गूँगी बहरी सरकारों, दे दो हमें जवाब चाहिए
– आकाश महेशपुरी
दिनांक- 27/08/2022