संवारो खुद का जीवन
सुकून से जीना चाहता हूं मैं
लेकिन जहां को ये पसंद नहीं
मजबूर करते हैं मुझको वही
वरना मुझे भी लड़ना पसंद नहीं
कुछ भी अच्छा करता हूं
उसमें नुक्स ढूंढ ही लेते हैं
ऐसे तुर्रम खान है यहां तो
खुद का मन बहला ही लेते हैं
लिखता हूं कुछ तो कविता में नहीं
उन्हें कविता की प्रेरणा में ज़्यादा रुचि है
क्या क्या बताऊं उनके बारे में तुम्हें
उनकी खताओं की बहुत लंबी सूची है
झांकना है उनको दूसरों के जीवन में ही
कभी अपने दिल में झांकते ही नहीं
छंट जायेगा जब संदेह का परदा आंखों से
जान जायेंगे जो अभी जानते ही नहीं
क्या रखा है झांकने में इधर उधर
वक्त अपने जीवन को संवारने में लगाओ
मिलेगा नहीं कुछ भी अफवाहें फैलाने से
है हिम्मत तो खुद कुछ कर के दिखाओ
समझ नहीं आता मुझे तो ये सब
छुप छुपकर बातें करने में आता है क्या मज़ा
छोड़कर अपने जीवन का आनंद
जो ये कर रहे हो, किसने दी है तुम्हें ये सज़ा
जी लो खुद भी इस जीवन को
मिला है भाग्य से जो हमको
क्या कर रहा कोई दूसरा यहां
क्या लेना है इस बात से तुमको।