संवाद :भक्त और भगवान
भक्त उवाच:
जब जब धरती पर मचे, अनाचार अरु पाप!
तब तब प्रभु हों अवतरित, काटें सब संताप!!
आज चहुँदिशि व्याप्त हैं, पाप ताप संताप!
हे माधव अवतरित हो, और मिटाओ पाप!!
कृष्ण उवाच:
कृष्ण कृष्ण रटते सदा, पाते हो संताप!
आशा करते कृष्ण से, आकर मेटे पाप!!
अकर्मण्यता ओढ़कर, करते रहते जाप!
पांडव खुद ही लड़े थे, तभी मिटे थे पाप!
युद्ध आपका खुद लड़ो, स्वयं मिटाओ पाप!
मैं तो हूँ बस सारथी, खुद घट फोड़ो आप!!
श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद!