संयोग
“मम्मा !मै कुछ नहीं जानती ,आज हमारे ओल्ड ऐज होम को पूरा एक साल हो गया है,आज तो आपको मेरे साथ चलना ही होगा!” “हाँ संजू बेटा!आज मै पक्का चलूंगी,तुम्हारे साथ”मैंने कहा।ये मेरी इंजिनियर बेटी का इकलौता सपना था ,तभी बहुत खुश है वो आज। अपने पापा के चले जाने के बाद मेरे अकेलेपन को उसने कब और कैसे महसूस किया ,ये तो मै भी नहीं जानती थी,मगर वो इस उम्र की तकलीफें समझती थी,ये ही मेरे लिए बड़ी बात थी।
मै ओल्ड ऐज होम पहुंची तो मुझसे मिलने के लिए पहले ही वहां
सब तैयार थे। इतने में मेरी नज़र साधना पर पड़ी, और हम दोनों हैरान हो गए। साधना मेरी हमउम्र दोस्त थी,शादी के बाद ही हम दोनों मिले।मेरी बेटी और उसके जुड़वाँ बेटे,एक ही दिन एक ही नर्सिंग होम में हुए थे। दोनों परिवार बहुत खुश थे,मगर साधना ने कुछ ऐसा कहा,जिसके बाद मैंने उससे कभी बात नहीं की।”क्या बेटी हुई है,मुझे देखो बेटे हुए है वो भी दो,तुम किस्मत की बहुत कमजोर निकली सुरेखा!”वो दिन और आज का दिन मैंने उससे बात नहीं की।
लेकिन साधना ही मेरे पास आई और बोली”कितना बड़ा संयोग है न सुरेखा,कल जिन बेटों पर घमंड करके तुम्हें गाली दी थी,उन्होंने मुझे घर से बाहर निकाल दिया,पर तुम्हारी बेटी मुझे फिर से घर ले आई!””मुझे माफ़ कर दो सुरेखा!”उसकी भीगी आँखों ने मेरी आँखें फिर भीगा दी,मगर इस बार बेटी के गुरुर में मेरी आँखों में आंसू थे