” संयम या किस्मत “
कहानी सच्ची है कहीं कुछ भी मिलावट नहीं है , सन २००२ अगस्त में मेरे ससुर का देहांत हुआ था इसलिए हमें कोई भी त्यौहार , जन्मदिन मनाने की मनाही थी | मेरी बेटी छोटी थी इसलिए उसको समझाना थोड़ा मुश्किल था खैर किसी तरह दीपावली अँधेरे में निकाल गई उसके बाद आई होली…मैंने सोचा अपनी दीदी के घर चली जाती हूँ बेटी का मन बहल जाएगा | हम दीदी के घर जाने की तैयारी करने लगे तभी मुझे ध्यान आया कि मेरे कान के हीरे के टाप्स और दो अंगूठियाँ जिसमें एक हीरे की और एक सोने की ( जिनको सोते वक़्त चश्मे के केस में उतार के रख दी थी ) गायब है मैंने जल्दी – जल्दी अलमारी वगैरह में ढूंढा लेकिन वो नहीं मिलीं , जाने की जल्दी थी तो सोचा आकर इत्मीनान से देखूगीं और हम दीदी के यहाँ आ गए |
होली बाद वापस अपने घर…दिमाग में टेंशन तो था की आखिर कहाँ रख दिये मैंने गहने ? खोज – खोज कर हार गई , अचानक से ख्याल आया की बबिता ( बर्तन और झाडू – पोछा करने वाली लड़की ) से पूछती हूँ , बबिता की शादी अभी नहीं हुई थी….पहले उसकी माँ मेरे यहाँ काम करती थी बहुत ही ईमानदार औरत थी इसलिए थोड़ी झिझक हो रही थी…हिम्मत करके मैंने बबिता से पुछा…बबिता तुमने मेरे कान के टाप्स और दो अंगूठियाँ तो नहीं देखी हैं वहीँ पलंग के बगल में रखी थीं…उसने तपाक से ज़वाब दिया…” नहीं भाभी जी मैंने तो नहीं देखा “ …पता नहीं क्यों उसके ज़वाब देने का ढंग पसंद नहीं आया मुझे , उस वक़्त तो कुछ नहीं बोली मैं… दूसरे दिन फिर पुछा मैंने फिर वही ज़वाब अब उसकी माँ को बुलवाया उसकी माँ ने खुद से पूरे कमरे में झाड़ू लगाया लेकिन कोई फ़ायदा नहीं हुआ सामान नहीं मिला , फिर उसकी माँ ने मुझसे बोला की मैं अपने घर में खोजती हूँ फिर आपको बताऊगीं…दूसरे दिन वो आई और बोली की उसके घर में तो नहीं है हो सकता है कि बबिता जिस लड़के के साथ छुप कर मिलती है उसके पास रखवा दिया हो फिर बोली की ये लड़की मेरे बस में तो है नहीं अब आप ही किसी तरह उससे कबूलवाइये , अब क्या करूँ मैं ? बहुत दिमाग लगाया लेकिन गुस्सा नहीं किया बबिता पर अगर गुस्सा करती तो पता चलता की महारानी काम छोड़ कर बैठ जातीं और मेरे गहने हाथ से निकाल जाते | फिर तो मेरा रोज़ का काम हो गया की बबिता आती और मै प्यार से शुरू हो जाती “ बबिता जरा ध्यान से झाड़ू लगाना क्या पता मिल जाए “ लेकिन कहाँ जनाब ! घर में हो तब न मिले…करीब हफ्ते भर ये सिलसिला चलता रहा मैंने सोचा…बहुत हुआ…अब कड़ाई करनी होगी , सुबह बबिता आई मैंने उससे बोला “ बबिता कहीं तुमने उन गहनों को बेच तो नहीं दिया पता है उसमे हीरे लगे हैं नकली पत्थर नहीं हैं मै पुलिस में रिपोर्ट लिखाने जा रही हूँ…पुलिस आएगी तो तुम्हारे घर भी जायेगी और उस लड़के के घर भी जायेगी “ कौन सा लड़का भाभी ? झट से बबिता बोल पड़ी…मैंने कहा वही जिसके साथ कल घूम रही थी तुक्का लगाया था मैंने ( क्यों की कल शाम को काम करने नहीं आई थी और उसका भाई पूछने आया था की बबिता आई है की नहीं ? ) बबिता की फिर वही सफाई “ नहीं भाभी हम काहे लेब “ , उसी दिन शाम को बबिता आई और आते ही बोली भाभी आज हम झाड़ू लगाते हैं…मैं बोली रोज़ कौन लगाता हैं ? इस बात पर हँसने लगी और फिर झाड़ू लेने आँगन में चली गई पीछे – पीछे मैं भी गई और खिड़की से देखने लगी ( शक मुझे हो गया था की आज कुछ करने वाली हैं ये ) क्या देखती हूँ कि अपने सलवार में से उसने कुछ निकाला ( मन किया की उसको वहीँ धर दबोचूं लेकिन रोक लिया अपने आप को ) और कमरे की तरफ चली गई थोड़ी ही देर में रसोई में आई और बोली “ ये लीजिये आपके गहने “ आप तो कह रही थीं की मिल नहीं रहे हैं देखिये मैंने ढूंढ लिया ना वहीँ पलंग के नीचे ही तो पड़े थे… तुक्का काम कर गया था उस लड़के के घर पुलिस ना पहुँच जाए इस डर ने मेरे गहनों को मेरे हाथों में ला कर रख दिया था…देखा तो गहने पूरे थे उन पर हरा रंग लगा था ज़रूर उनकों पहन कर होली खेली गई थी…घर से बाहर गए गहने वापस आ गए थे ये अपने आप में बहुत बड़ी बात थी…गहनों को हाथ में लिए खड़ी मैं सोच रही थी की वाकई ये मेरा संयम था या मेरी किस्मत ? राम ही जाने…तभी बबिता की आवाज़ से मै चौक गई वह पूछ रही थी…भाभी चाय बनाऊं ? अब मै हँसी और बोली हाँ ज़रा कड़क तुलसी वाली बनाओ साथ में अपने लिए भी बना लेना…जिंदगी वापस अपने पुराने ढर्रे पर चल पड़ी थी |
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 30 – 08 – 2018 )