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23 May 2021 · 2 min read

संभोग और समाधी!

मनुष्य की सम्पूर्ण यात्रा संभोग और समाधी के बीच की यात्रा है।
हमारे त्रषि मुनियों ने मनुष्य की मुक्ति के बारे में गहन अध्ययन और उपाय भी किए। बहुत सुंदर इस बिषय पर पुस्तकें भी लिखी गई हैं।पर! मेरा एक गहन अध्ययन है कि संभोग और समाधी मनुष्य के मन के ऊपर निर्भर करती है। मनुष्य का मन बहुत चंचल होता है।यह किसी आम उपाय से वश में नहीं हो सकता है।
मनुष्य के अंदर मन एक महाशक्ति के रूप में बिराज मान है।
हमारे त्रषि मुनियों ने बुढ़ापे के वक्त शरीर को जीते जी त्यागना ,को समाधी कहा है। लेकिन मनुष्य का मन कभी भी समाधिषट
नही हो सकता है।जब साधु संत ध्यान लगाते हैं।कि भगवान को हम प्राप्त कर लेयगे।हम गृहस्थ रहकर भी साधु संत बन सकते हैं। मनुष्य मन को शून्य विचारों वाला नही बना सकते हैं। बड़े बड़े
उपदेशक यह बात तो करते हैं कि आप लोग समाधिषट हो जायो।
पर मन कभी भी समाधी नही ले सकता है।अगर आप भक्ति करने लगे तो मन क्या शून्य हुआ है। उसका चंचल पन कभी भी खत्म नही किया जा सकता है। मनुष्य या समस्त जीवों का एक स्वभाव होता है।मन कामवासना में रम जाता है।यह उसका प्राकृतिक स्वभाव है। उसे शारिरिक प्र्रक्रिया से गुजरना ही पड़ता है। उसे वह रोक नही सकता है। जैसे ही वह अपना आहार गृहण करेगा।
हार्मोन्स बनना स्वाभिक है।यह मनुष्य के शरीर की आवश्यकता होती है। और यह सब प्राकृतिक है। और अगर मनुष्य समाधी लेता है तो वह अप्राकृतिक है। क्योंकि मनुष्य की मौत निश्चित है।
फिर हम उसे जबरन मारना चाहते हैं। ओशो ने भी संभोग और समाधी पर विस्तार से चर्चा की है।

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Comment · 471 Views
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