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30 Mar 2021 · 1 min read

संभल कर चलना ——– ( मुक्तक )

****मुक्तक****
(१)
संभल कर चलना पड़ता है ,यहां हर कोई अक़डता है।
तड़पने वाला तड़पता है, उसे कहां फर्क पड़ता है।।
यह दुनियादारी ही ऐसी, जाने है क्या क्या बीमारी।
कराता दर्द का एहसास, रोग जब कोई जकड़ ता है।।
(२)
किसी से आशा क्या करना,काम खुद अपने तू करना।
डरना बस डरना इसी से तू ,गलत राहें मत चलना।
मिलेगा तुझको तेरा हक,छोड़ दे अपने मन का शक।
रखना विश्वास ईश्वर पर, स्वाद जीवन का तू चखना।।
राजेश व्यास अनुनय

Language: Hindi
5 Likes · 6 Comments · 622 Views
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