संबंधों का एहसास
थोड़ा रुक कर जीवन जी ले कब तक यूं ही भागेगा
जीवन की इस अंधी दौड़ में अकेला ही रह जायेगा
वह बचपन का साथ सुहाना वह संगी साथी छूट गए
बिन बोले जिनके घर जाते थे वे सारे साथी छूट गए
अब तो जाने के पहले कहीं कई बार सोचना पड़ता है
संबंधों के इस अंकगणित में सारे रिश्ते छूट गए
वो लुका छिपी वो टीपू कंचे और गिल्ली डंडा छूट गया
वो गुट्टे वो लंगड़ धप्प, हॉकी और फुटबॉल छूट गया
बदला समय साथ इसी के खेलों ने नया स्वरूप लिया
इंटरनेट के युग में बच्चों का मैदान में आना छूट गया
पैदल शहर की खाक छानना बीते युग की बातें हैं
साइकिल पर शहर नापना सुनी सुनी सी बातें हैं
ना अब वैसे दोस्त बचे अब न ही वे फुर्सत के लम्हे
वो हो हल्ला वो ढींगा मस्ती यादों की ही बाते हैं
भौतिकता की अंधी दौड़ में कब तक इंसान भागेगा
अपने झूठे अहम की खातिर रिश्तों का दांव लगाएगा
संबंधों के इस अभाव में तेरा जीना भी क्या जीना है
सहेज सके तो सहेज ले रिश्ते समय फिर नही आयेगा
थोड़ा रुक कर जीवन जी ले कब तक यूं ही भागेगा
जीवन की इस अंधी दौड़ में अकेला ही रह जायेगा
संजय श्रीवास्तव
बालाघाट मध्यप्रदेश
19.7.2023