संदेह
मन में संदेह को मत आने देना,
संदेह बढ़ाता है नित उलझन।
विश्वास रखो उस पर अपने उर ,
जिसको भी अपना समझा हो।
बातचीत से सुलझा लो दुविधा,
मत हृदय बनाओ संदेह का घर।
मुश्किल को बढ़ाता है संदेह सदा,
अपनो से अक्सर दूर कराता है।
वेबजह कभी कभी ये आकर,
उलझन को नागवार बनाता है।
सच्चाई पिस जाती इसके आगे,
अंत पछतावा छोड़ ये जाता है।
हकीकत पर पर्दे डाल कर ,
उल्टा राग हमे सुना जाता हैं।
ये संदेह दुविधा में डाल हमे,
खुशियों से दूर करा जाता है।
संदेह हमारी खुशियों को जला,
हमे अंधरों में भटकाता रहता है।
जब तक होश आता है सच का,
नजरों से गिरा ये मुस्काता है।
बुद्धि विवेक और धैर्य से ही,
संदेहों का अपने निदान करो।
मत खोना अपने अंतर की दृष्टि,
सच की स्वयं ही पहचान करो।
स्वरचित एवं मौलिक
कंचन वर्मा
शाहजहांपुर
उत्तर प्रदेश