संदेशा
९)
” संदेशा ”
सुन , क्या बोले-
अनंत आकाश में
उड़ते हुए ये पंछी
देते हैं हमें ये संदेशा
कहते हैं रूको मत, आगे बढ़ो
अपने सपनों को पंख दो
उन्हें ऊँची उड़ान दो
नापने को असीम आकाश दो
मंज़िल पर पहुँचने का हौसला रखो
पर हाँ,
अपने पंखों को सँभाले रखना
नज़रों को झुकने न देना
लक्ष्य पर निगाह रखना
रास्ते में आने वाली
बाधाओं को गिराते जाना
कोई डराए तो न डरना
थकना मत ,
ओ मंज़िल के मुसाफ़िर
यदि ऐसा कर पाए तो
वो दिन दूर नहीं जब
मंज़िल तुम्हारे कदमों तले होगी
और हाँ , याद रखना
अपनी मंज़िल हासिल करने को
किसी दूसरे को न सताना
किसी को न चोंच मारना
न किसी को नीचे गिराना
एक बात और यारों
कितना भी ऊँचा उड़ लो तुम
पर वापस लौट कर
अपनी धरती पर ज़रूर आना
मेरा ये संदेशा तुम याद रखना
स्वरचित और मौलिक
उषा गुप्ता, इंदौर