संत पुरुष रहते सदा राग-द्वेष से दूर।
संत पुरुष रहते सदा राग-द्वेष से दूर।
प्रेम हृदय का बाँटते रहते वे भरपूर।।
राम नाम के नूर की सदा जोहते बाट,
नहीं चाहते कभी भी वे जन्नत की हूर।।
;;;; महेश चन्द्र त्रिपाठी
संत पुरुष रहते सदा राग-द्वेष से दूर।
प्रेम हृदय का बाँटते रहते वे भरपूर।।
राम नाम के नूर की सदा जोहते बाट,
नहीं चाहते कभी भी वे जन्नत की हूर।।
;;;; महेश चन्द्र त्रिपाठी