संतोष धन
बहुत लूटा लुटेरों ने,
ये दौलत कम नहीं होती।
हजारों ज़ख्म खाकर भी,
ये आंखे नम नहीं होती।।
है ये संतोष की दौलत,
जो कि प्रभु प्रेम से पाया।
हूं प्रेमी सत्य का ‘संजय’,
मंसूखों में दम नहीं होती।।
जय हिंद
बहुत लूटा लुटेरों ने,
ये दौलत कम नहीं होती।
हजारों ज़ख्म खाकर भी,
ये आंखे नम नहीं होती।।
है ये संतोष की दौलत,
जो कि प्रभु प्रेम से पाया।
हूं प्रेमी सत्य का ‘संजय’,
मंसूखों में दम नहीं होती।।
जय हिंद