संडे हो या मंडे
संडे हो या मंडे
प्रिया तेरे प्यार में हुए हम अंधे
पता नहीं मुझे कुछ भी
क्यों रुठी है पूछ भी
संडे हो या मंडे
प्रिया तेरे प्यार में हुए हम अंधे
न जाने इतना सुन्दर, क्यों लगती हो मुझको
दिन रात अपने ख्वाबों में, देखती दिल तुझको
फस गये ए बंदे
बुरे हैं प्यार के धंदे
संडे हो या मंडे
प्रिया तेरे प्यार में हुए हम अंधे
मैंने तुझसे पहले, किसी को ना चाहा
तेरे जैसा कोई गम, किसी से ना साहा
दीवानगी के झंडे
बन गये प्यार के फंदे
संडे हो या मंडे
प्रिया तेरे प्यार में हुए हम अंधे
—————–०—————–
✍️जय लगन कुमार हैप्पी ⛳
बेतिया (बिहार)