“संडे कहीं खो गया” (संक्षिप्त कहानी)
दीदी बहुत याद आती है नाना-नानी की । वो शनिवार को स्कूल की जल्दी छुट्टी होना, मम्मी का शनिवार-रविवार को स्पेशल-डिश बनाना, कभी-कभी हमारी मालिश करने से लेकर घर के कामों को निपटाकर नाना-नानी के यहां जाना,पापा का सब्जी लेते हुए लेने आना और नानाजी के साथ गरम भजिये खाते हुए मम्मी के साथ हमारा भी स्पेशल संडे मनता था।
हां भाई सही कहा, अब न तो नाना-नानी रहे और न ही मम्मी की नौकरी, परंतु वे सुनहरी यादें बन गई हमारे दिलों में यादगार।
लेकिन जब से पुणे पढ़ने आए, सबका संडे कहीं खो गया,#कहां गया मम्मी का संडे?