संज्ञा गीत
सोचो बच्चों यदि नाम ना हो, इस संसार में,
बात करोगे आप कैसे, अपने दोस्तों यार में।
व्यक्ति, वस्तु, स्थान, भाव के, होते अपने नाम है,
यही नाम मिलकर करते, संज्ञा का हर काम है।।
चलिए अब हम मिलते हैं संज्ञा के परिवार से,
एक-एक करके जानेंगे हम पूरे विस्तार से।।
प्रथम भेद है व्यक्तिवाचक, यह बड़ा ही खास है ,
सभी विशेष नामों यह, रखता अपने पास है।
इसे जानना सरल है बच्चों,
रखना तुम एक बात का ध्यान।
इसके जैसा दुनिया में ,
नहीं होगा कोई और समान ।
द्वितीय भेद है जातिवाचक ,
इसे समझना आसान है ।
एक नहीं पूरे वर्ग का,
बोध करवाना इसका काम है।
एक सरल उपाय है बच्चों,
जान जाओगे तुम इसका भेद।
याद रखना इस बात को,
यह एक नहीं होगा अनेक।
इस जातिवाचक के अंदर, दो और भेद भी आते हैं ,
द्रव्य तथा समूह वाचक, वे दोनों ही कहलाते हैं।।
द्रव्य अर्थात ऐसी चीजें जो, गिनी नहीं जा सकती है।
पानी ,दूध, तेल, अनाज, इनकी मात्राएं मापी जाती है।।
तरह-तरह के धातु भी इसके अंदर ही आते हैं ।
लकड़ी, सोना, चांदी, लोहा, यह भी द्रववाचक कहलाते हैं।
जो व्यक्ति, वस्तु या प्राणी के, समूह का बोध करवाते हैं।
वह सारे ही शब्द बच्चों, समूहवाचक संज्ञा कहलाते हैं।।
कक्षा, सेना ,भीड़ ,झुंड आदि इसके अंतर्गत आते हैं ,
इन शब्दों को देखते ही, इसे झट से पहचान जाते हैं।।
तृतीय भेद है भाववाचक , दिखता नहीं है आंखों से,
इसे समझना होता है, अपने मन के भावों से ।।
यह किसी प्राणी या वस्तु की ,भाव दशा का बोध कराता है, थकान, हंसी, बुढ़ापा, प्यार, आदि शब्दों में आता जाता हैं।
परिचित हो गए अब आप, संज्ञा के परिवार से ,
अब ना आप घबराओगे इसके एक भी सवाल से ।।