संघर्ष-पुस्तक समीक्षा
अधिकतर कविताओं में देशसेवा की खातिर सरदह पर डटे जवानों के जीवन-संघर्ष को प्रस्तुत किया है कवि राजकुमार मीणा ने…..
जिन्दगी का दूसरा नाम ही संघर्ष है, किसी के जीवन में कुछ कम संघर्ष होता है तो किसी के हिस्से कुछ ज्यादा आ जाता है। विद्वानजनों ने कहा है कि जीवन चलने का नाम है, क्योंकि लोग तो रुके हुए पानी को भी पंसद नहीं करते। ये संघर्ष इन्सान को उन राहों का राही बना देता है, जिसके बारे में शायद उसने स्वयं भी कल्पना नहीं की होती। कुछ ऐसे ही संघर्ष में पले एवं आगे बढ़े कवि की काव्य-कृति है ‘संघर्ष’।
कवि राजकुमार मीणा ने अपने प्रथम काव्य-संग्रह ‘संघर्ष’ के माध्यम से इनसानियत सेवा, परोपकार के गुण, देश के प्रति फर्ज, आस्था, जज़्बा एवं बलिदान के प्रति अपने मन के भावों को कविताओं के रूप में जिस प्रकार पिरोया है, वह बेहद प्रशंसनीय कार्य है, क्योंकि राजकुमार मीणा स्वयं देश सेवा की खातिर सरहद पर डटे हुए हैं।
कहते हैं कि लेखन-कार्य God Gift होता है, जो हर किसी के हिस्से नहीं आता। रचकानाकर अपनी कलम और कागज़ के माध्यम से पाठकों को उन राहों की सैर करवा देता है, जिसके बारे में हम केवल सोच सकते हैं, किन्तु पहुँच नहीं सकते। कुछ ऐसे ही पलों से हमें रूबरू करवाया है कवि राजकुमार मीणा ने अपनी दिलचस्प कविताओं से।
प्रस्तुत पुस्तक ‘संघर्ष’ में ‘मेरे अरमान’ से लेकर ‘वतन की तकदीर हो तुम’ तक कुल छियासठ कविताओं में कवि ने आज के युवाओं को प्रत्येक लाइन में ये बताने का प्रयास किया है कि जीवन को मौज-मस्ती में न बिताएँ बल्कि ऐसे कार्यों में लगाएँ, जिनसे केवल आपका, परिवार का या रिश्तेदारों का ही नहीं, बल्कि देश का नाम रोशन हो।
कवि ने अपने भावों को जाहिर करते हुए उक्त पुस्तक में एक कविता में लिखा है—
‘लाख मुश्किल हों राहें सब,
मजबूत इरादों से आसान हो जाती हैं।’
तो दूसरी जगह सुधी पाठकों से कहा—‘मेरी पुस्तक को अपने कर-कमलों में लेने वालो यह कविताओं का गुलदस्ता वतन के सीमा-प्रहरियों के जज़्बात, जुनून, संघर्ष, बलिदान तथा कर्तव्यनिष्ठा का एक आईना है।’
उक्त पुस्तक पठनीय, संग्रहणीय एवं उपहार योग्य है।
-मनोज अरोड़ा
लेखक, सम्पादक एवं समीक्षक
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