*संगीत के क्षेत्र में रामपुर की भूमिका : नेमत खान सदारंग से
संगीत के क्षेत्र में रामपुर की भूमिका : नेमत खान सदारंग से आचार्य बृहस्पति तक
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लेखक: रवि प्रकाश पुत्र श्री राम प्रकाश सर्राफ, बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज), रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451
ईमेल raviprakashsarraf@gmail.com
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रियासतों में कोई भी कला तभी समृद्ध संभव है, जब उसे राज्याश्रय प्राप्त हो। रामपुर रियासत का आरंभ प्रथम नवाब फैजुल्ला खान के 1774 में राज्यारोहण से होता है। लेकिन उससे भी पहले उनके पूर्वज नवाब अली मोहम्मद खान जो कि मुगल बादशाह मोहम्मद शाह रंगीला के दरबार में मनसबदार थे, उनकी संगीत विषयक रुचि के कारण प्रारंभ माना जाता है। उस समय दिल्ली दरबार में जो संगीतकार सक्रिय थे, उनसे अली मोहम्मद खान की रुचि के कारण अंतरंगता स्थापित हुई। इनमें सर्वोपरि नाम नेमत खान सदारंग का आता है। इस तरह नेमत खान सदारंग और रामपुर के 1750 ई से पूर्व रहे नवाब अथवा मनसबदार अली मोहम्मद खान के पारस्परिक संगीत संबंधों के कारण रामपुर में संगीत की परंपरा आरंभ हुई। अनेक विद्वानों ने इसे रामपुर घराना, रामपुर स्कूल अथवा रामपुर की सदारंग संगीत परंपरा कहकर संबोधित किया है।
नेमत खान सदारंग के परिवारजन अथवा शिष्यों ने भी रामपुर रियासत के साथ अपने संबंध स्थापित किये । इनमें नेमत खान सदारंग के भतीजे फिरोज खान अदारंग, मेहंदी सेन और करीम सेन के नाम उल्लेखनीय हैं ।
1857 के बाद जब लखनऊ और दिल्ली दोनों जगह से ही राज्याश्रय बदरंग होने लगा, तो रामपुर संगीत का केंद्र बना। तत्कालीन नवाब युसुफ अली खान ने संगीत को रामपुर में स्थापित करने में विशेष रुचि ली। इस प्रक्रिया में नेमत खान सदारंग के वंशज सुरसिंगार वादक बहादुर हुसैन खान तथा बीन वादक अमीर खान भी रामपुर दरबार में स्वागत-सत्कार के योग्य सिद्ध हुए। बहादुर हुसैन खान वह व्यक्ति थे, जिन्हें वाजिद अली शाह ने ‘जिया उद्दौला’ की उपाधि प्रदान की थी। बीन वादक अमीर खान की परंपरा में उनके पुत्र वजीर खान तथा उसके उपरांत उस्ताद दबीर खान ने बीन वादन के क्षेत्र में रामपुर का नाम ऊंचा किया। उस्ताद दबीर खान का तो जन्म स्थान ही रामपुर रहा।
नवाब युसूफ अली खान के दौर में संगीत को प्रश्रय देने का कार्य उनके उपरांत नवाब कल्बे अली खान के शासनकाल में भी खूब चला । कल्बे अली खान के शासनकाल में संगीत विषयक प्रेम का एक आयाम यह भी जुड़ा कि स्वयं नवाब कल्बे अली खान के छोटे भाई नवाब हैदर अली खान ने संगीत में व्यक्तिगत रूप से रूचि ली तथा सदारंग की परंपरा से जुड़े हुए संगीतकारों का शिष्यत्व ग्रहण किया। बहादुर हुसैन खान और अमीर खान ऐसे ही सदारंग परंपरा के संगीतकार थे।
नवाब हैदर अली खान की परंपरा को उनके पुत्र नवाब सहादत अली खान उर्फ छम्मन साहब ने और आगे बढ़ाया। स्वयं नवाब परिवार के संगीत में दक्षता ग्रहण करने का परिणाम यह निकला कि बढ़-चढ़कर रामपुर रियासत के भीतर संगीत को बढ़ावा दिया गया।
सहादत अली खान रामपुर के नवाब हामिद अली खान के साथ संगीत के प्रचार और प्रचार में संलग्न हुए। जब 1918 में दिल्ली में अखिल भारतीय संगीत सम्मेलन भातखंडे जी के द्वारा स्थापित किया गया, तब उसके अध्यक्ष नवाब हामिद अली खान थे। सहादत अली खान ने उस समय घोषणा की थी कि जो भी विद्यार्थी संगीत सीखने के लिए पढ़ना चाहता है, वह उसकी आर्थिक रूप से मदद अवश्य करेंगे। स्वयं नवाब हामिद अली खान ने भातखंडे जी के संगीत सम्मेलन को ₹50,000 (पचास हजार रुपए)की नगद धनराशि प्रदान की थी। यह उस समय बहुत बड़ी रकम मानी जाती थी।
रामपुर के अंतिम शासक नवाब रजा अली खान हुए। उनके बारे में यह माना जाता है कि वह स्वयं में एक अच्छे संगीतकार थे। ‘खरताल’ बजाना उन्हें खूब आता था। नवाब रजा अली खान ने ‘संगीत सागर’ नामक महत्वपूर्ण संगीत विषयक पुस्तक की रचना की थी। उनके संगीत और काव्य विषयक कई कार्य महत्वपूर्ण रहे। नवाब रजा अली खान के दरबार में अनेक संगीतकारों को पर्याप्त सम्मान प्राप्त हुआ। उदाहरणार्थ उस्ताद अहमद जान थिरकवा तबला वादक, उस्ताद हफीज खान सरोद वादक, सुदेशरी बाई टप्पा ठुमरी और नृत्य कलाकार, रोशन आरा बेगम, बेगम अख्तर, बिरजू महाराज, अच्छन महाराज और सितारा देवी को रियासती दरबार से पर्याप्त सामान प्राप्त हुआ।
नवाब रजा अली खान धार्मिक दृष्टि से उदार विचारों के धनी थे। उनकी दृष्टि में संगीत एक ईश्वरीय आराधना थी। 17 मार्च 1939 को दिल्ली में आयोजित भारतीय संगीत के अखिल भारतीय सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए नवाब रजा अली खान ने जिन उदार विचारों को प्रकट किया, वह ध्यान देने योग्य हैं । उन्होंने कहा :-
“भारत का प्राचीन इतिहास और हिंदू धर्म की पुस्तकें साक्षी हैं। संगीत ईश्वर भक्ति का साधन था। सबसे पहले स्तुति महादेव जी ने की। महादेव जी का समय मुकर्रर करना इतिहास की स्मरण शक्ति से बाहर है। भारत की यह प्राचीन कला अफगानिस्तान के रास्ते से ईरान के दरबार तक जा पहुंची, जिसको दार्शनिकों ने अपने प्रचुर लगाव से दर्शनशास्त्र का एक हिस्सा बना दिया।”
गुलाम मुस्तफा खान (मृत्यु 18 जनवरी 2021) के उल्लेख के बिना रामपुर से संगीत का परिचय अधूरा ही रहेगा। शास्त्रीय संगीत में आपका ऊंचे दर्जे का स्थान रहा। भारत सरकार ने आपको संगीत के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए पद्म विभूषण से सम्मानित किया था। लगभग नव्वे वर्ष की आयु में आपका निधन हुआ। आप रामपुर-सहसवान शास्त्रीय संगीत घराने के प्रतिनिधि संगीतकार कहे जा सकते हैं। मूलत बदायूं की सहसवान तहसील से अनेक श्रेष्ठ प्रतिभाओं ने रामपुर के साथ अपने आप को जोड़कर संगीत कला का उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है। गुलाम मुस्तफा खान उदार विचारधारा के धनी थे। आपका कहना था कि “हमारी नजर में संगीत ही पूजा है। हम संगीत में डूब कर ही सब कुछ प्राप्त कर लिया करते हैं।”
आचार्य बृहस्पति का योगदान:
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रियासत के विलीनीकरण के उपरांत भी संगीत के क्षेत्र में रामपुर का योगदान कम नहीं रहा। इस दृष्टि से जिन रामपुर निवासियों ने संगीत के क्षेत्र में अद्भुत कीर्तिमान स्थापित किया, उनमें आचार्य कैलाश चंद्र देव बृहस्पति का नाम अत्यंत आदर के साथ लिया जाता है। आपका जन्म 1918 में रामपुर में हुआ था। 31 जुलाई 1979 में मृत्यु के समय तक आपकी संगीत साधना निरंतर जारी रही।
आपने भरत मुनि के नाट्यशास्त्र के 28 वें अध्याय के अध्ययन-मनन के लिए अपने जीवन के बहुमूल्य वर्ष अर्पित किए तथा यह सिद्ध किया कि संगीत में बहुत सी बारीकियां भारत की ही मूल विशेषता है तथा यह भारत से होकर ही संसार के अन्य देशों तक पहुंची हैं । प्राचीन ग्रंथ भरत मुनि के नाट्यशास्त्र में संगीत के वाद्यों के बारे में विस्तार से बताया गया था। आचार्य बृहस्पति ने 1959 में ‘भरत का संगीत सिद्धांत’ नामक ग्रंथ लिखकर प्रकाशित करवाया तथा संपूर्ण विश्व के सामने भारत के संगीत ज्ञान का लोहा मनवाया। इस कार्य के लिए आपने बृहस्पति वीणा, बृहस्पति किन्नरी और श्रुति दर्पण की रचना की। आप संगीत के थ्योरी और प्रैक्टिकल दोनों पक्षों में निपुण थे। 1965 में आकाशवाणी दिल्ली में संगीत के प्रोड्यूसर पद पर आपकी नियुक्ति संगीत साधना में आपके कार्यों को व्यापक रूप से मान्यता प्रदान करने का प्रत्यक्ष प्रमाण है। 1966 में आप संगीत, ब्रजभाषा और संस्कृति विभाग के मुख्य परामर्शदाता नियुक्त हुए। आपने भारत सरकार के सूचना प्रसारण मंत्रालय में जनवरी 1978 तक परामर्शदाता पद पर कार्य किया। संगीत के क्षेत्र में आपके गुरु नवाब मिर्जा तथा अयोध्या प्रसाद पखावजी थे।
एक स्थान पर आपने लिखा है कि “एक वर्ग सरस्वती की वीणा की ओर से तटस्थ है और दूसरा सरस्वती की पुस्तकों को व्यर्थ पोथी समझता है। साहित्यकार जब संगीत की ओर से तटस्थ है और संगीतज्ञ जब रस तत्व से अनभिज्ञ है, तब संगीत और साहित्य को निकट कैसे लाया जाए ?” आचार्य बृहस्पति का संगीत के क्षेत्र में सबसे बड़ा योगदान संगीत और साहित्य को निकट लाने का रहा।
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संदर्भ :-(1) पुस्तक ‘रामपुर का इतिहास’ लेखक शौकत अली खॉं एडवोकेट, प्रकाशन वर्ष 2009 ईसवी
(2) पुस्तक ‘साहित्य-संगीत-संगम द्वारा आयोजित आचार्य बृहस्पति पुण्य जयंती समारोह’, प्रकाशन वर्ष 1988 ईसवी
3) गुलाम मुस्तफा खान साहब से रवि प्रकाश की वार्ता दिनांक 4 जनवरी 2010