संगीत और स्वतंत्रता
संगीत और स्वतंत्रता
नदी में बाढ़ आई थी, दूर तक जल ही जल था, यज्ञदत्त ने पूरी रात नाँव पर काटी थी , सुबहआँख खुली तो सूर्योदय के इस विस्तृत सौंदर्य से उसका मन भर आया, किसी चुंबकीयशक्ति से उसके हाथ चप्पुओं पर पहुँच गए, जैसे कोई संगीत की भीनी तार से उसे खींच रहाहो,और वह बिना किसी परिश्रम के बढ़ता जा रहा हो, नदी कब समुद्र बन गई और समुद्र कबकिस अनंत जल में समाता चला गया, उसे पता ही नहीं चला । उसी तंद्रा में उसने देखा एकयोगी पर्वत की चोटी पर , पेड़ के नीचे समाधिस्थ वीणा बजा रहा है। वह मंत्रमुग्ध सा उनकेचरणों में जा गिरा, योगी ने आँखें खोल दी ।
“ आ गए तुम ?“
“ जी। आप कौन हैं ? “
“ मैं तुम्हारा ही रूप हूं, अनंत काल से तुम्हारी धरोहर संभले बैठा हूं ।”
“ क्या है मेरी धरोहर ?”
“ यह वीणा ।”
“ परन्तु मैं तो संगीत नहीं जानता, एक जोहरी का पुत्र हूं । “
योगी ने फिर से आँखें बंद कर ली, और वीणा का सुर साध लिया । समय, और ‘मैं,’ दोनों उन स्वरों में विलीन हो गए ।
योगी ने फिर से आँखें खोली,
“ अब? “
“ अब मैंने अनेकों सुर अपने भीतर सुने, पशु- पक्षी, पेड़ – पौधे, जल, वायु, अग्नि, मिट्टी, कीटाणु, दृश्य अदृश्य, सब की गति को अनुभव किया , गीत के स्वर को अनुभव किया, फिर उसे शून्य में शांत होते अनुभव किया ।”
योगी ने फिर से आँखें बंद की, फिर से स्वर साधा, इस बार कुछ भी शेष न रहा, यज्ञदत्त अचेत हो भूमि पर गिर पड़ा ।
योगी ने आँखें खोली,
“ अब ? “
यज्ञदत्त की साँस थम गई थी, वह समाधिस्थ शून्य में देख रहा था, उसका चेहरा न तेजवान था, न तेजहीन, न जड़ था, न चेतन।
“ तुम जो देख रहे हो, यह सृष्टि के निर्माण का पल है, तुम देख रहे हो गुरुत्वाकर्षण, विद्युत शक्ति, चुंबकीय शक्ति के साथ साथ स्वर का भी जन्म हो रहाहै, इसीमें संगीत समाया है, संगीत में भाव, भाव में भाषा, भाषा में ज्ञान, ज्ञान में आचार, आचार में शांति, शांति में सुख । तुम इस प्रथम सुर को सँभालोऔर मुझे ब्रम्हाण्ड में विलीन होने दो । “
“ अवश्य, परन्तु यह कार्य आप मुझ जैसे साधारण मनुष्य को क्यों सौंप रहे हैं ?”
“ क्योंकि साधारण ही असाधारण है, जिस पल तुम सूर्योदय के सौंदर्य से अभिभूत हो मेरे तक खिंचे चले आए, उस पल से तुम शुद्ध हो, स्वयं सूर्य होनेलगे।”
यज्ञदत्त वहीं समाधिस्थ हो वीणा के स्वर में लीन होने लगा ।
नगर, प्रांत से पानी फिर अपनी सीमाओं में बंधने लगा, दूर दूर तक समाचार फैलने लगा कि एक योगी पर्वत पर ध्यानस्थ संगीत को लयबद्ध किये है, मानोवह जीवन की उथल-पुथल को समेटे, शांत मन से जीवन के चरम अर्थ ढूँढ रहा है ।
संध्या होते ही लोग आने लगते , एक दिन एक नर्तकी आई और उस दिव्य संगीत पर यकायक नाच उठी, फिर कवि आया, उस संगीत को शब्दों में पिरोनेलगा, किसी ने तूलिका उठाई और वहीं पर्वत पर संगीत को भौतिक आकार देने लगा,कोई मूर्तियाँ गढ़ने लगी । धीरे धीरे यह संगीत घर घर पहुँच गया, किसान निश्चिंत हो गुनगुनाते हुए हल चलाने लगा, औरतों के हाथ संगीत की लय पर चलने लगा, सब जगह यह समाचार फैल गया कि राज्य में हर कोईअपने अपने नियम से जी रहा है।
समाचार राजा तक भी पहुँचा, राजा एक संध्या अपने गाजे बाजे के साथ पर्वत आ पहुँचा, आते ही उसने कहा,
“ इस संगीतज्ञ का मैं सम्मान करना चाहता हूँ, इसे अपने दरबार का मुख्य रत्न घोषित करता हूँ ।”
किसी ने उसकी ओर ध्यान नहीं दिया तो वह क्रोध से थरथराने लगा, “ मैं यह अनाचार इस राज्य में नहीं होने दूँगा । “
राजा के अंगरक्षकों ने पर्चे बाँटने शुरू किये, जिसमें लिखा था, राज्य है तो सुरक्षा है, राज्य है तो प्रगति है, राज्य है तो प्रकृति पर विजय है । और राजाराज्य का आधार है ।
लोग बिना पर्चे पढ़ें, संगीत सुनते रहे ।
राजा क्रोध से थरथराता, यज्ञदत्त के सामने आकर खड़ा हो गया ,
“ यदि इस संगीतज्ञ का जीवन चाहते हो तो पर्चों पर लिखे मेरे विचारों को सहमति दो ।”
एक किसान खड़ा हुआ, “ हमें राजा और राज्य की आवश्यकता नहीं ।”
“ अर्थात् आप अराजकता चाहते हैं ?“ राजा के एक अंगरक्षक ने कहा ।
“ नहीं, हम स्वतंत्रता और जीवन में विश्वास चाहते हैं ।” दूसरे ने कहा ।
“ आपने हमें युद्ध और सीमायें दी हैं , जबकि यह पृथ्वी एक है , और सबकी है। “ तीसरे ने कहा ।
“ आपने हमें पशुओं से भी बदतर जीवन दिया है, बेड़ियों में बांधा है। हमारी पहचान कुछ सरकारी काग़ज़ों में क़ैद हो गई है। “चौथे ने कहा ।
“ जिन प्राकृतिक आपदाओं से आप सुरक्षा की बात कर रहे हैं, उसी प्रकृति का संतुलन आप हमारी राय की परवाह किए बिना बिगाड़ रहे हैं ।” पाँचवें नेकहा ।
“ यह सब तुम्हें इस पाखंडी ने सिखाया है । “ राजा ने क्रोध से योगी की ओर संकेत करते हुए कहा ।
लोग राजा की बात सुनकर हंस दिये ।
“ योगी ने तो अभी आँख खोल कर हमें देखा भी नहीं , बस, उसके संगीत ने हमें सारी अस्थिरताओं से शांत कर दिया है, और हम देख सकते हैं, हमें बाह्यसता की आवश्यकता नहीं, हमारा मन ही हमारा पथ प्रदर्शक है, विशाल राज्य व्यक्ति की गरिमा को नष्ट करते हैं ।” एक युवक ने पूरी सौम्यता से कहा ।
राजा जान गया, वह इस बार संगीत से परास्त हो गया है। वह नये राज्य की स्थापना करेगा, जहां आरम्भ से ही कलाकारों को पदों तथा धन से विभूषितकरेगा, ताकि उनका क़द कभी भी सरकार से बड़ा न हो सके, और जन सामान्य को वर्गों में बाँटा जा सके।
शशि महाजन- लेखिका
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