संगति
संगति जो करे जैसा,
वैसा ही खुद ढल जाए,
सत् संगति सच ही बाँटे,
झूठ संगत् दुःख ही देय।……(१)
संगति एक से हो या अनेक से,
होए तो सज्जन से होए,
एक ही कु-संगति भारी पड़े,
अनेक सु-संगति सुखद हो जाए।…..(२)
संगति सूझबूझ से किजिये,
परख लियो तब जान,
ऊपर से जो चमके कुंदन हो,
बिन परखे नही होत पहचान।…..(३)
संगति होती है गुरु-सी,
माता की संगति पा लेता लाल,
ज्यो-ज्यो बोले शब्द मुख से माँ,
वहीं शब्द बोलन को बालक करें प्रयास।…..(४)
संगति ऐसी बनाइये ,
जो कहलाये सत्संग,
छूट जाए मन का मैल,
खिले ज्यो ज्ञान कमल।……(५)
रचनाकार –
बुद्ध प्रकाश
मौदहा हमीरपुर।