संकल्प का प्रभाव
धागा उलझा एक रेशम का और परिधान ही नष्ट हुआ
क्यों बिलखे आज की पीड़ा से, भावी हुआ निर्मित जो कष्ट हुआ
कर्म एक पाषाण है जो भित्ति का निर्माण करे
कल के भवन का हर पत्थर, ओट न बज्र न बाण बने
शब्द एक बीज है जो, मन की भूमि पर गिरता है
अप्रायोजित यदि हो ये, विक्षिप्त ही बनकर फिरता है
कभी भूल से हुए कार्य का भी, परिणाम, बहुत भयानक होता है
कभी नियती बदलती फ़ुरसत को, और, सबकुछ अचानक होता है
श्रवण जनक ब्याकुलता से मरे, क्यों तीर का यूँ संधान हुआ
ऋतु के बीत जाने पर गुण-भाव का थोड़ा ज्ञान हुआ
माता कुंती अनभिज्ञ थी तब, दशरथ राजा मन निश्छल था
कन्यादान करने के समय, द्रुपद का ह्रदय लहूलुहान हुआ
कर्म करे वो प्राणी है, चिंता न करे वो मानव,
सुख देखे बिज्ञानि है,
करुणा-धैर्य से विपाको को, अपना ले जो,
शायद वही तो ज्ञानी है
भूल बिसमरण करके पथ पर , हिमानी जैसे बढ़ो आगे
एक परिधान त्यागो और छोड़ दो उलझे धागे
रुके जल मे जन्म लेंगे बिषाणु, जलधारा सा बनाओ स्वभाव
नारायण की इस नगरी मे, अवसर के नहीं है अभाव
लालसा-स्वप्न पूर्ण होते नहीं , संकप्ल ही आकार लेते है
संकल्प भूत भूल जाने का फिर देख अपना प्रभाव