संकरण हो गया
संकरण हो गया जब से प्रकृति के बाग़ में
भौंरे बागों से कोसो दूर जाने लगे
अब तो फूलों में भी रंजिशें हो गईं
एक दूजे को देख के मुरझाने लगे
फूल कम खिल रहे हैं अब तो बाग़ में
फूल कम हैं बचे माली के भाग में
माली ने कितना चाहा है बाग़ को
के उगाने में उसको ज़माने लगे
संकरण हो गया जब से प्रकृति के बाग़ में
भौंरे बागों से कोसो दूर जाने लगे
रंग तो फूल का अब गया है बदल
भीनी खुशबू उसमे से अब आती नहीं
मधुमक्खियाँ भी आजकल फूल तक
शहद ले जाने खातिर जाती नहीं
माली के हाथ से होता कम अंकुरण
बीज जाने किन हाथों में जाने लगे
संकरण हो गया जब से प्रकृति के बाग़ में
भौंरे बागों से कोसो दूर जाने लगे
फूल ताजे कहाँ मिलते हैं आजकल
मिल गए भी तो उनमे कोई खुशबू नहीं
अनेको रंग -बिरंगे फूल हैं मिल रहे
पर उन्हे सूंघने की कोई आरजू नहीं
फूल को जेब में रखता अब कौन है?
इत्र अनेकों तरह के जो लगाने लगे
संकरण हो गया जब से प्रकृति के बाग़ में
भौंरे बागों से कोसो दूर जाने लगे
-सिद्धार्थ गोरखपुरी