Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
24 Apr 2020 · 3 min read

श्रृद्धांजलि : राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर

आज राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की पुण्यतिथि है। उनका जन्म बिहार के बेगूसराय के सिमरिया गांव में 23 सितंबर 1908 में हुआ था। बचपन में इनके पिता का देहांत हो गया था। बचपन बहुत कठिनाई और अभाव में बीता परंतु संघर्ष और अध्ययन के बल पर दिनकर ने ज्ञान और मान दोनों प्राप्त किया। वो हाईस्कूल के टीचर से लेकर भारत सरकार के हिंदी सलाहकार और मनोनीत सांसद राज्यसभा तक का सफ़र ऊर्जा और ओज के गीत गाते हुए तय कर गए।

रामधारी सिंह ‘दिनकर’ मुख्यधारा के साहित्य और मुख्य धारा की राजनीति पर बने उस पुल का नामहै। जिससे होकर जनता के सवाल, हताशा, क्षोभ,कृतज्ञता, प्रेम सत्ता तक पहुँचते रहे। ओज और ऊष्मा का यह कवि भारतीय मानस की सामूहिक चेतना का राष्ट्रीय दर्पण बन सका तभी जनता ने इन्हें राष्ट्र कवि के का गौरव संबोधन दिया।

दिनकर सत्ता की महत्ता को चुनौती देते हुए कविता का आयुध थामें निरंकुश हो चुके सिंहासन के सामने खड़े हो कर जनता के रथ का सारथी बने, कभी सिंहासन ख़ाली करने को कहते हैं तो कभी भूखी जनता की व्यक्त की कथा। माँ की बूढ़ी छाती के चिपके बच्चे की दशा से बेहतर अमीरों के कुत्ते की स्थिति होने पर आँसू बहाने वाले कवि। उर्वशी के सौंदर्य का आलम्ब लेकर पुरुष की शाश्वत और नैसर्गिक स्वभाव के चित्रण करते हुए, प्रेम और रति का कोमल तंतु झंकृत कर जाते हैं दिनकर।

दिनकर को विपरीत ध्रुवों को साधने में बचपन से ही महारत हासिल थी। कठिनाइयों से लड़ने और उन पर नकेल कसने में जैसे उन्हें आनंद आता था। इसलिए उनकी कविताओं में स्पंदित साहस बोध धमनियों में धड़कने लगता है। उनके यहां संवेदना के आँसू हैं पर निराशा का विलाप नहीं, आलस्य और प्रमाद के बादल नहीं हैं बल्कि परिश्रम और पुरुषार्थ का सूर्य है। सत्ता का सानिध्य है पर वो प्रवक्ता जनता के हैं।

मार्क्स अच्छे लगते हैं पर प्रभावित गाँधी से हैं। संसद में कांग्रेस की तरफ से नेहरू जी के साथ हैं पर उनके चिर प्रतिद्वंदी लोहिया को साहसी और वीर कहने से नहीं चूकते। दिनकर कहते हैं।

“अच्छे लगते मार्क्स, किंतु है अधिक प्रेम गांधी से
प्रिय है शीतल पवन, प्रेरणा लेता हूं आंधी से”

“तब कहो, लोहिया महान है
एक ही तो वीर यहां सीना रहा तान है”

ये पंक्तियां 1962 में लिखी एक व्यंगात्मक कविता की पंक्तियां थीं। दरअसल 1961 के बाद भारत-चीन सीमा पर संघर्ष से क्षति, भारत-चीन युद्ब में भारत की हार और गरीब निर्धन वर्ग को विपन्नता पर दिनकर ओज और व्यंग की कविताएँ कर रहे थे और स्थापित प्रतिमानों से सीधे भिड़ रहे थे। तो उपरोक्त पंक्तियों को सुन कर लोहिया ने दिनकर से कहा कि “महाकवि, ये छुटपुट पंक्तियां काफ़ी नहीं हैं तुमको मुझपर पूरी कविता लिखनी चाहिए जैसे तुमने जयप्रकाश जी पर लिखी है”।

इसका दो टूक जवाब देते हुए दिनकर जी ने लोहिया से कहा “जिस दिन आप मुझे उस तरह प्रेरित कर देंगे जैसा मैं जयप्रकाश जी से हुआ था। उस दिन कविता स्वयं ही निकल आएगी”। दरअसल दिनकर 1931 में भगत सिंह की शहादत के बाद से ही देख रहे थे कि मुख्यधारा की राजनीति में समाजवाद की बहस तेज़ हो गई थी। कांग्रेस के भीतर गाँधी-नेहरू के भीतर समाजवाद और उसकी संकल्पना पर मतभेद, द्वंद, बहस थी तो लोहिया,नरेन्द्रदेव, जयप्रकाश और अन्य के नेतृत्व में एक वामपंथी-समाजवादी धड़ा सक्रिय हो गया था।

इस सब वैचारिक बहस और नूराकुश्ती का कुल हासिल सिफर ही रहा दिनकर की दृष्टि में। वह कहा करते थे समाजवादी आंदोलन में जो बेहतर थे उन्हें आदर्शवाद ने मार दिया, अध्यात्म ने खींच लिया और जो घाघ थे वो कुर्सी पर बैठ गए”। दिनकर कभी आलोचना के उन्नत स्वर से समझौता नहीं करते थे।

वह अपनी बात कहने से कभी पीछे हटने वाले नहीं थे। दिनकर किसी खाँचे, किसी साँचे में बंधने वाले नहीं थे। वो प्रकाश की तरह एक ही पल में तरंग भी हो सकते थे और कण भी। दिनकर कविता की उन्मुक्त चेतना थे। जिसका नियंत्रक स्वयं कवि के वश में भी नहीं था। आज राष्ट्रकवि दिनकर की पुण्यतिथि है आज उनके स्मरण उन्हें नमन करने का दिवस है। कविता और राष्ट्र की अस्मिता से प्रेम करने वालों के लिए दिवस महत्वूर्ण और स्मरणीय है।

अनुराग अनंत, प्रयाग द्वारा प्रकाशित श्रृद्धांजलि
अमर उजाला Fri, 24 Apr 2020

Language: Hindi
Tag: लेख
10 Likes · 4 Comments · 285 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Shyam Sundar Subramanian
View all
You may also like:
ये नामुमकिन है कि...
ये नामुमकिन है कि...
Ravi Betulwala
मेरा होकर मिलो
मेरा होकर मिलो
Mahetaru madhukar
*मनः संवाद----*
*मनः संवाद----*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
जीवन दर्शन (नील पदम् के दोहे)
जीवन दर्शन (नील पदम् के दोहे)
दीपक नील पदम् { Deepak Kumar Srivastava "Neel Padam" }
ज़िंदगी तेरा
ज़िंदगी तेरा
Dr fauzia Naseem shad
लक्ष्य
लक्ष्य
Suraj Mehra
आपका भविष्य आपके वर्तमान पर निर्भर करता है, क्योंकि जब आप वर
आपका भविष्य आपके वर्तमान पर निर्भर करता है, क्योंकि जब आप वर
Ravikesh Jha
आ..भी जाओ मानसून,
आ..भी जाओ मानसून,
goutam shaw
जो औरों के बारे में कुछ सोचेगा
जो औरों के बारे में कुछ सोचेगा
Ajit Kumar "Karn"
मन मोहन हे मुरली मनोहर !
मन मोहन हे मुरली मनोहर !
Saraswati Bajpai
वह फूल हूँ
वह फूल हूँ
Pt. Brajesh Kumar Nayak / पं बृजेश कुमार नायक
विचार
विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
दुनिया रंग दिखाती है
दुनिया रंग दिखाती है
Surinder blackpen
वो प्यार ही क्या जिसमें रुसवाई ना हो,
वो प्यार ही क्या जिसमें रुसवाई ना हो,
रुपेश कुमार
चोट दिल  पर ही खाई है
चोट दिल पर ही खाई है
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
हारना नहीं, हार मानना गुनाह है। हालात से।। (प्रणय)
हारना नहीं, हार मानना गुनाह है। हालात से।। (प्रणय)
*प्रणय*
International Hindi Day
International Hindi Day
Tushar Jagawat
तुम मुझे भूल जाओ यह लाजिमी हैं ।
तुम मुझे भूल जाओ यह लाजिमी हैं ।
Ashwini sharma
मैं एक फरियाद लिए बैठा हूँ
मैं एक फरियाद लिए बैठा हूँ
Bhupendra Rawat
भटकती रही संतान सामाजिक मूल्यों से,
भटकती रही संतान सामाजिक मूल्यों से,
ओनिका सेतिया 'अनु '
*भेदा जिसने है चक्रव्यूह, वह ही अभिमन्यु कहाता है (राधेश्याम
*भेदा जिसने है चक्रव्यूह, वह ही अभिमन्यु कहाता है (राधेश्याम
Ravi Prakash
युगांतर
युगांतर
Suryakant Dwivedi
काव्य-अनुभव और काव्य-अनुभूति
काव्य-अनुभव और काव्य-अनुभूति
कवि रमेशराज
हजारों के बीच भी हम तन्हा हो जाते हैं,
हजारों के बीच भी हम तन्हा हो जाते हैं,
लक्ष्मी वर्मा प्रतीक्षा
देव दीपावली कार्तिक पूर्णिमा
देव दीपावली कार्तिक पूर्णिमा
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
3412⚘ *पूर्णिका* ⚘
3412⚘ *पूर्णिका* ⚘
Dr.Khedu Bharti
"नेवला की सोच"
Dr. Kishan tandon kranti
साँसें थम सी जाती है
साँसें थम सी जाती है
Chitra Bisht
सांसें स्याही, धड़कनें कलम की साज बन गई,
सांसें स्याही, धड़कनें कलम की साज बन गई,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
रास्तों पर चलते-चलते
रास्तों पर चलते-चलते
VINOD CHAUHAN
Loading...