श्रृंगार
मुखड़ा बिल्कुल चाँद सा, जुल्फें जैसे रैन
गोरी के हैं शर्म से, झुके झुके से नैन
झुके झुके से नैन, कनक सी उसकी काया
मगर पड़ा है आज, विरह का उस पर साया
रही ‘अर्चना’सोच, सुनाये किसको दुखड़ा
दिखता बड़ा उदास, फूल सा उसका मुखड़ा
06-04-2018
डॉ अर्चना गुप्ता