श्रृंगार रस में तीन मुक्तक
1
मेरी ये बात लो बस मान तुम चले आओ
तुम्हारा होगा ये अहसान तुम चले आओ
ये आँखे देखना इक बार बस तुम्हें चाहें
चली न जाये कहीं जान तुम चले आओ
2
गगन के चाँद सितारों में ही रही डूबी
मैं जागी जागी भी सपनों में ही रही डूबी
कोई तो कहता है दीवाना कोई तो पागल
यूँ रात दिन तेरी यादों में ही रही डूबी
3
लो हमने नाम तेरे अपनी ज़िन्दगी कर दी
तेरी खुशी को ही बस अपनी भी खुशी कर दी
खुदा की करते इबादत हैं हम यहां जैसे
उसी तरह से मुहब्बत भी बन्दगी कर दी
11-05-2019
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद