श्रृंगार रस पर मुक्तक
1
दिल की तुम भी सुनो दिल की हम भी सुने
ज़िन्दगी के सुरीले सुरों को चुने
बीच में हम किसी को भी आने न दें
आंखों में ख्वाब इक दूसरे के बुने
2
ख्वाब तोड़े जो तुमने वो जुड़ न सके
प्यार के फिर गगन में भी उड़ न सके
बात ने हर तुम्हारी यूँ घायल किया
पग तुम्हारी तरफ फिर तो मुड़ न सके
3
प्यार की राह पर हमको चलना न था
गर चले भी तो ऐसे बिखरना न था
जब मुकर अपने ही वादों से वो गये
हल कभी फिर कोई भी निकलना न था
18-08-2020
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद