श्रृंगारिक दोहे
रूठी-रूठी नींद है ,ख्वाब न आते पास।
गोरी से अब मिलन की,टूट गई है आस।।1
अधरों पर हैं तैरती ,यादें बनकर गीत।
आ जाओ नववर्ष-सी,ओ प्यारी मनमीत।।2
निखरा यौवन से बदन,खिली रूप की धूप।
आकर्षित सब देखकर,क्या योगी क्या भूप।।3
मुझको आतीं हिचकियाँ,कहतीं हैं ये बात।
उनको भी आती नहीं ,निंदिया सारी रात।।4
बैठे-बैठे आ गया,बरबस उनका ख्याल।
आँखों से आँसू बहे ,गीला हुआ रुमाल।।5
लंपट भौंरा लिपट जब,करे पुष्प सँग प्रीत।
रूप, रंग, सौंदर्य के ,तब वह गाए गीत।।6
थी दोनों के बीच में ,दौलत की दीवार।
साबित करता मैं भला,बोलो कैसे प्यार।।7
जबसे आया हे सखी,यौवन तन के द्वार।
पुरजन परिजन हैं खड़े,बनकर पहरेदार।।8
गले लगाकर प्रेम से ,प्रेमी की तस्वीर।
कर लेती है मिलन की,इच्छा पूरी हीर।।9
नज़रबंद दिल में किया,दे गोरी ने प्यार।
नहीं रिहाई के लिए ,मौके की दरकार।।10
आया गोरी देह पर,जब यौवन मधुमास।
आने की कोशिश करें,भंवरे तब से पास।।11