श्री हनुमत् कथा भाग-7
श्रीहनुमत् कथा , भाग – 7
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श्री हनुमानजी की बुद्धि , चातुर्य एवं अतुलित बल पर विश्वास करके श्री राम ने अपनी मुद्रिका प्रदान करते हुए उसे सीता जी को दिखाने के लिये कहा जिससे सीता जी का हनुमान जी पर विश्वास हो जाए ।सीताराम नमांकित उस मुद्रिका को लेकर हनुमान जी अंगद , जामवंत आदि बन्दर – भालओं के साथ श्री राम – लक्ष्मण को प्रणाम करके सीता अन्वेषण के लिए चल पडे़ । चलते समय सुग्रीव जी ने कहा कि एक माह में सीता अन्वेषण नहीं कर पाये तो प्राणदन्ड पाओगे । यह सुनकर वानर – भालुओं के अनेक समूह विभिन्न दिशाओं में फैल गये । हनुमानजी अंगद , जामवंत आदि के साथ दक्षिण दिशा में गये । सीमा अन्वेषण में लगे हुए वानर – भालू अति उत्साहित होकर दुर्गम पर्वत , वन , तालाब , कन्दराओं को लांघते हुए चले जा रहे थे । आगे चलकर उन्हें थकान एवं जोर से प्यास लगन लगी । यह देखकर हनुमानजी ने पहाड़ पर चढ़कर एक गुफा को देखा । उसके ऊपर हंस , चकवे ,वगुले् आदि जलचर पक्षी उड़ रहे हैं एवं कुछ पक्षी उसमें प्रवेश कर रहे हैं । हनुमानजी ने वानर – भालुओं के साथ उस गुफा में प्रवेश करके एक सुन्दर उपवन , तालाब एवं मन्दिर मे एक आसन पर बैठी हुई एक तपस्विनी को देखा जो हेमा नामक अप्सरा की सखी स्वयंप्रभा थी जिसके निर्देश पर सभी वानर – भालुओं ने स्नान , जलपान एवं सुन्दर मीठे फल खाकर थकान मिटाई । हनुमानजी के द्वारा सब बृत्तान्त जानकर उस तपस्वी ने अपने तप बल से उन्हें पलक झपकते ही समुद्र के किनारे पहुँचा दिया ।
:-डाँ तेज स्वरूप भारद्वाज -: