श्री हनमत् कथा भाग -4
?श्री हनुमत् कथा ?
भाग – 4
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बाल हनुमान जी के पूर्णतया स्वस्थ होने पर वायुदेव अत्यंत प्रसन्न हुए। वायु पूर्ववत् संचरण करने लगा जिससे सभी प्राणियों को जीवन सा मिल गया । इससे प्रसन्न होकर विभिन्न देवताओं ने हनुमान जी को अनेक वरदान दिए। इन्द्र ने अपने बज्र से अभय एवं अबध्य होने का, सूर्यदेव ने रविवत् तेजस्वी एवं स्वयं पढाने का, वरुण ने अपने पाशों एवं जल से रक्षित होने का, विश्वकर्मा एवं शिव ने अपने सभी अस्त्रों से अभय होने का, यक्षराज कुबेर ने युद्ध में कभी बिसादयुक्त न होने एवं अपने गदा द्वारा हमेशा अबध्य होने का तथा अन्त में ब्रह्मा जी ने किसी भी ब्रह्मदण्ड से दणित न होने का वरदान दिया ।
अनेक वरदान प्राप्त करके हनुमान जी स्वयं को प्रमत्त सा दिखाते हुए उद्ण्ड बालकों की तरह अनेक लीलाऐं करने लगे जिससे बाद में ब्राह्मणों एवं ऋषि – मुनियों द्वारा शापित होकर सामान्य बालकों की भाँति माता -पिता को अपनी बाल-सुलभ क्रीड़ाओं से दीर्घकालिक सुख प्रदान कर सकें। हनुमान जी ब्राह्मणों एवं ऋषि – मुनियों की पूजा , हवनादि को नष्ट – भ्रष्ट कर देते । इससे पीड़ित ,आतंकित एवं कुपित होकर उन्होंने हनुमान जी को शाप देते हुए कहा कि जब तक हनुमान जी को कोई उनकी शक्ति एवं वरों का स्मरण नहीं कराएगा तब तक वे अपनी शक्ति को भूले रहेंगे । इस प्रकार हनुमान जी शापित होकर स्वयं को बलहीन सा दिखाते हुये सामान्य बालकों के समान बाल- सुलभ क्रीड़ा यें करने लगे ।खेल में धूल-धूसरित होकर माता की गोद में छिप जाते और दुग्धपान करने लगते ।कभी अतिशय हर्ष के कारण बाल-सुलभ किलकारी मारने लगते ।बाल हनुमान जी का स्वर्गवत तप्त शरीर तथा घुंघराले बाल अत्यंत सुन्दर लगते जिन्हें माता अंजना वार-वार संवारती।हनुमान जी धीरे -धीरे काँपते हुए एवं बिना आधार के लड़खड़ाते हुये चलने लगे।कभी- कभी शीघ्रता से लड़खड़ाते हुए चलने के कारण जमीन पर गिर पड़ते। माता अंजना दौड़कर उन्हें संभालती और अपनी गोद में बैठकर उनके मुख का वात्सल्य से चुंबन करने लगती। अंजना जब भगवान को भोग लगाकर आँखें बन्द करके ध्यान करती तो हनुमान जी को भोग लगाता हुआ पाकर वाहर से कुछ अप्रसन्न सा दिखाती तथा अन्दर से प्रसन्न होती ।जब पिता केसरी संध्या करते तो पुत्र को अनुकरण करता हुआ पाकर खिलखिलाकर हँस पड़ते। हनुमान जी तैरने में, दौड़ने में, छलाँग मारने में, पेड़ पर चढ़ने आदि खेलों में हमेशा अपने बाल मित्रों से आगे रहते।इस प्रकार बाल- सुलभ क्रीड़यें करते हुए बाल हनुमान जी ने माता – पिता दोनों को दीर्घकालिक सुख प्रदान किया ।
????सेवक- डाँ0 तेज स्वरूप भारद्वाज ????