श्री सीता सप्तशती
।।जय श्री राम ।।
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श्री सीता सप्तशती
(काव्य-कथा)
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त्रियोदश सोपान
{ श्री राम प्रभु से मिलन एवम् भूमि में समाना }
गतांक से आगे ….!
अंक- १८१
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भूमि सुता वैदेही हैं माता जगदम्ब भवानी ।
नारी के संघर्षों की गाथा है सिया कहानी ।।
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किया नमन स्वीकार राम ने, वन्दन हो गई सीता,
मिली दृष्टि से दृष्टि तो शीतल चन्दन हो गई सीता ,
बहे अश्रु आँखों से जन अभिनन्दन हो गई सीता ,
मिटा दिया अस्तित्व स्वयं रघुनन्दन हो गई सीता ,
भरी सभा में वाल्मीकि ऋषि ,की फिर गूँजी वानी ।
नारी के संघर्षों की गाथा है सिया कहानी ।।३१
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हे नृपश्रेष्ठ! उपस्थित है यहाँ , मम पुत्री सम सीता ,
कभी न बोला झूँठ हे राजन! है पवित्र तम सीता ,
सतियों में है सती शिरोमणि, सती श्रेष्ठतम सीता ,
मात्र आपका ध्यान धरा करती है हरदम सीता ,
करें इसे स्वीकार बनायें अवधपुरी महारानी ।
नारी के संघर्षों की गाथा है सिया कहानी ।।३२
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बोले कौशलनंदन है निष्पाप, जानकी भगवन,
फैला था अपवाद हुआ था, दूषित जन-जन का मन,
उचित यही है करे शुद्धता सिया प्रमाणित इस छन,
ताकि शांत लोकापवाद हो ,फिर न बने जन रंजन ,
दिया प्रमाण सिया ने ऐसा , सोच न पाये प्रानी ।
नारी के संघर्षों की गाथा है सिया कहानी ।।३३
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बोली सीता हे पृथ्वी माँ ! पति मेरे रघुनंदन ,
सदा किया है मैंने उनका ,अपने मन में चिंतन ,
किया है केवल उनका यदि हे माता ! मैंने वंदन,
अंक लगा लो आकर कह दो जग से मैं हूँ कुंदन ,
भूमि फटी प्रगटी सिंहासन ले पृथ्वी कल्यानी ।
नारी के संघर्षों की गाथा है सिया कहानी ।।३४
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देख सिया का उपक्रम लव कुश, निकट दौड़ कर आये ,
हमें छोड़कर माँ मत जाओ, कहकर कर फैलाये ,
दोनों की आखों ने आँसू अविरल बहुत बहाये ,
सीता ने मृदुवाणी से लव कुश दोनों समझाये ,
आज्ञा पितु की सदा मानना बोली सिय मृदुवानी ।
नारी के संघर्षों की गाथा है सिया कहानी ।।(३४अ)
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नाथ क्षमा कर देना मेरी, अनजानी भूलों को ,
सौंप रही हूँ आज आपके ही मैं दो फूलों को,
नहीं मिला पाया है कोई , नदिया के कूलों को,
लिये जा रही संग आपकी ,राहों के शूलों को,
ऋषिवर विदा दीजिये मुझको, बोली सिय कल्यानी ।
नारी के संघर्षों की गाथा है सिया कहानी ।।(३४ब)
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सीते ! है आदेश राम का मुझे छोड़ मत जाओ,
अपना जीवन शेष सभी अब , मेरे साथ बिताओ ,
जन-जन क्षमा माँगता तुमसे, मत कठोरता लाओ,
हे ऋषिवर ! जैसे भी हो वैदेही को समझाओ ,
रुकी नहीं सब मोह त्याग कर ,चल दी सिया भवानी ।
नारी के संघर्षों की गाथा है सिया कहानी ।।(३४स)
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सन्नाटा छा गया सभा में, सुन सीता की वानी ,
हर जन पश्चाताप कर रहा, झरे नयन से पानी,
क्षमा दीजिये माता हमको, अब तो सिय महारानी,
बोल न फूटे मूख से सबकी ,मौन हो गई वानी ,
कम्पित ओठ नयन में आँसू ,कर जोड़े हर प्रानी ।
नारी के संघर्षों की गाथा है सिया कहानी ।।(३४द)
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अभिनंदन कर बाँह बढ़ा कर सीता को बैठाया ,
सिंहासन सीता को लेकर, भू में तुरत समाया,
समझ न पाया कोई सिय ने , यह क्या दृश्य दिखाया,
अपनी पूर्ण शुद्धता का यह कैसा साक्ष्य जुटाया ,
लुटे-लुटे से खड़े रह गये , राम, ऋषि, जन, ज्ञानी ।
नारी के संघर्षों की गाथा है सिया कहानी ।।(३५)
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-महेश जैन ‘ज्योति’
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