श्री परशुराम आरती
आरति
आरति परशुराम मुनिवर की।
युध्द दक्ष कर फरसा धर की।
उग्र नयन दहकत अति ज्वाला।
महा तपस्वी देह विशाला।
ब्रह्मचर्य के शुचि निर्झर की।
आरती परशुराम मुनिवर की।।१।।
जमदग्नि सुत मातु रेणुका।
गुरु शिव की सिर धरें पादुका।
षष्टम् विष्णु रूप अक्षर की।
आरति परशुराम मुनिवर की।।२।।
ब्रह्म तेज दमकत मुख मुण्डल।
अक्षमाल कर श्रुति रै-कुण्डल।
जरा हीन द्विजदेव अमर की।
आरती परशुराम मुनिवर की।।३।।
मुनि महेन्द्र गिरि तप तन धारे।
पितृ भक्त क्षत्रिय कुल तारे।
दुष्ट सहस्रार्जुन के अरि की।
आरति परशुराम मुनिवर की।।४।।
दंभी- दर्पी -खल- दल-नाशक।
तिमिर विदारक सत्य प्रकाशक।
इषुप्रिय व्यापक सचराचर की।
आरति परशुराम मुनिवर की।।५।।
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अंकित शर्मा ‘इषुप्रिय’
रामपुरकलाँ,सबलगढ(म.प्र.)