श्राद्ध
श्राद्ध में करते तर्पण अर्पण,
फल फूल भोजन सभी समर्पण।
कपड़ा लत्ता चादर बिस्तर,
चप्पल-जूते थाल कनस्तर।
जीते जी रोटी दी न समय पर,
पास न बैठे हो तुम पल भर ।
बीमारी में सुधि ले न सके तुम,
बोझ बूढ़ों का ढो न सके तुम।
अब काहे को करते हो दिखावा,
सो-सौ पंडित का करते जिमावा।
चाह नहीं अब कुछ भी हमको,
तुम्हारा सब कुछ मुबारक तुमको।
एक तिरस्कृत आत्मा