*श्रम का मूल्य (छोटी कहानी)*
श्रम का मूल्य (छोटी कहानी)
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“मुझे तो लगता नहीं कि कोरोना खत्म होने के बाद भी मुझे नौकरी पर रखा जाएगा। क्योंकि कल मैडम से बात हुई थी तो यही कह रही थीं कि अब तो हम और तुम्हारे साहब मिलकर सारे बर्तन खुद ही माँज लेते हैं । कोई परेशानी भी नहीं आती । अब जब उन्हें परेशानी ही नहीं आएगी , तो हमें रुपए देकर बर्तन क्यों मँजवाएँगी ?”
“मेरी मैडम भी यही कह रही थीं। बोलीं, झाड़ू मारने में हम तो समझते थे कि बहुत मेहनत पड़ती है लेकिन अब तो पूरे घर की झाड़ू भी लगा लेते हैं और पोछा भी लग जाता है । बड़ा आसान है । कभी हमने लगा लिया , कभी तुम्हारे साहब ने लगा दिया ।”
“मेरी मैडम तो शायद आधी सैलरी देंगी। कह रही थीं कि तुम्हारा काम ही क्या है ,बहुत आसान है । फिर हम लोग क्या करेंगे ? क्या बेरोजगार हो जाएंगे ? या हमारा वेतन कम होकर रह जाएगा ? मैं तो सोच रही थी कि अगले महीने से वेतन बढ़ाने की बात करूँगी । लेकिन यहाँ तो पिछले वेतन के ही लाले पड़ रहे हैं ।”
कॉलोनी में लॉकडाउन खुल चुका था तथा आठ-सात कामवाली बाई आपस में बैठकर उपरोक्त बातें कर रही थीं। तभी उधर से कुछ साहब और मैडम टहलते हुए नजदीक आ गए।
एक मैडम बोलीं” क्यों ? काहे की चकल्लस चल रही है? कुछ हमारे बारे में तो नहीं कह रही हो?”
जिससे पूछा, वह सकपका गई । पहले बोली “हां”, फिर बोली “नहीं “।
मैडम बोलीं” सच सच बताओ ?”
“हाँ सोच तो यही रहे थे कि आप हमें नौकरी से निकाल देंगे या आधा वेतन देंगे, क्योंकि सारा काम तो आपको आ ही चुका है ।”
सुनते ही मैडम बोलीं” बिल्कुल सही सोच रही हो।” फिर अपने साथ की महिलाओं और पुरुषों की ओर गर्दन मोड़ कर कहने लगीं” यह बात तो सही है कि हमसे सारा काम आ गया है और हम खुद भी कर सकते हैं । अब हमें तुम लोगों को नौकरी पर रखने की कोई मजबूरी नहीं है ।”
सुनकर कामवाली बाइयों का चेहरा मुरझा गया और वह परेशान हो गईं। तभी मैडम ने कहा “लेकिन हम तुम्हें नौकरी से नहीं निकालेंगे बल्कि तुम्हारा वेतन अब दुगना होगा।”
सुनकर कामवाली बाईयाँ आश्चर्यचकित हो गई । “क्या सचमुच ऐसा ही होगा ?”
मैडम बोलीं” अब ऐसा ही होगा। लॉकडाउन ने तो हमारी आँखें खोल दीं। अब हमें पता चला कि तुम लोगों का काम कितनी मेहनत और सुगढ़ता का होता है तथा इसे करना कितना कठिन है ।”
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लेखक : रवि प्रकाश , बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99 97 61 545 1