श्रद्धा
शायद इन प्रस्तर खंडों में विराजमान
देव प्रतिमाओं नेअस्तित्व
खो दिया अपना
तभी तो सड़क किनारे स्थित
देव स्थानों पर
बस की खिड़की से यात्री
अपने हाथ व सिर निकाल कर
श्रद्धा के कुछ सिक्के डाल कर
अपनी सीट पर बैठ
निश्चिंत सो जाते हैं
कुछ घर परिवार की
उलझनों में खो जाते है
मानो
भिखारी बनकर बैठे हो देवता
सड़क के किनारे
इनके सिक्कों की आस में
युगों युगों से
रचनाकर ओम प्रकाश मीना