श्रद्धा दे बचन
सूरज को निकलते देखा है तारो को चमकते देखा है ,
तुम बैठे रहो उजाले मैं मैंने हर शाम को ढालते देखा है
भगवान के मंदिर में मैंने घंटे को लटकता देखा है
रातों को चौबारे मैं नागिन सा मटकता देखा है
सूरज को निकलते देखा है तारो को चमकते देखा है तुम बैठे रहो उजालों में मैंने हर शाम को ढालते देखा है
लेखक – आशीष गुर्जर