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20 Jul 2024 · 1 min read

श्रंगार

स्वर्णिम आभा से युक्त अनिंद्य अभिनव सुन्दरी हो तुम।
रुप की तेजस्विता से युक्त मृगनयनी सी सुन्दरी हो तुम।
चांद भी तुम्हारे मुख को सुन्दरता निरख लजाने लगा।
स्वर्ग की अप्सराओं को मात करती बेमिसाल रुपसी हो तुम।
विपिन

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