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30 Dec 2022 · 1 min read

*श्रंगार रस की पाँच कुंडलियाँ*

श्रंगार रस की पाँच कुंडलियाँ
______________________________
( 1 )
प्यार
जाता जब नर लाँघकर ,सौ-सौ सागर पार
मिलता तब सौभाग्य से ,उसको कोई प्यार
उसको कोई प्यार ,नेह मुश्किल से मिलता
सुरभि भरा हो फूल ,एक जीवन में खिलता
कहते रवि कविराय ,तरंगों का यह नाता
भले दूर हों पास ,तृप्त जीवन हो जाता

( 2 )
आँखें

दिखलाना आँखें नहीं ,दुनिया बड़ी खराब
नेत्र तुम्हारे प्रिय जलधि ,मानो भरी शराब
मानो भरी शराब , लोग सब पीने वाले
करना मत विश्वास ,सभी हैं दिल के काले
कहते रवि कविराय ,आँख से आँख मिलाना
पलक खोलकर मस्त ,मुझे जादू दिखलाना

( 3 )
ओ प्रिय

काली – काली ज्यों घटा , लटके लंबे बाल
रूप सलोना मद – भरा , गोरे – गोरे गाल
गोरे – गोरे गाल , नाक में मोती गहने
सजग सुहानी चाल , पैर में पायल पहने
कहते रवि कविराय ,न आना ओ प्रिय खाली
लाना मधु मुस्कान ,शाम जब ढलती काली

( 4 )
मन का मीत
पाया किसने है यहाँ ,मन का चाहा मीत
जिसके सँग हँस-गा सकें ,जीवन के संगीत
जीवन के संगीत , अधर की भाषा जाने
दिल वीणा के तार , बजें तो झट पहचाने
कहते रवि कविराय , अधूरी रहती काया
आत्मा रही अपूर्ण , जन्म यह खोया-पाया

( 5 )
साथी
साथी ईश्वर का दिया , होता है सौगात
इसके सँग जगमग हुई ,रजनी और प्रभात
रजनी और प्रभात ,मुदित जीवन महकाते
हँसते – गाते साथ , रंग यों भरते जाते
कहते रवि कविराय , मस्त ज्यों रहते हाथी
जीवन जीते झूम , सदा मस्ती में साथी
________________________________
रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
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जलधि = समुद्र
रजनी = रात
प्रभात = सुबह

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