श्याम रंग मन को हरे, उस पर मधु मुस्कान
श्याम रंग मन को हरे ,उस पर मधु मुस्कान ।
नयन चतुर रस से भरे,अभिनव सी पहचान।।
श्याम सलोने बाँकुरे, पाकर मन की थाह।
सहज -सहज रस में घुले,खोते हिय की आन।
इंतजार में कट गये,सुबह शाम दिन रात।
दूरभाष मिलता नहीं, कैसे हो अब बात।
मन ही मन बैचेन हो,देखें प्रिय की राह।
आग उधर भी है लगी,जितनी है इस गात।
समस्याओं से जूझकर ,कभी न हिम्मत हार।
जब परिस्थिति विपरीत हो,साहस से लड़ना यार।
स्वाभिमान सबसे बड़ा, करें विवेकी काम।
यश वैभव मिलता उसे, सदा खुश रहे प्यार।
डा प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम