शोर, शोर और सिर्फ़ शोर, जहाँ देखो वहीं बस शोर ही शोर है, जहा
शोर, शोर और सिर्फ़ शोर, जहाँ देखो वहीं बस शोर ही शोर है, जहाँ देखो बस लोग भाग रहे हैं, सबके अंदर से झलकता है अधूरापन और खामोशी, जिसे छुपाते फिरते हैं,
किसी को काम से स्ट्रेस मिल रहा है तो,
किसी को स्ट्रेस से काम मिल रहा है,
कोई अकेलेपन में घुल रहा है तो,
कोई अकेले होने को तरस रहा है।
दुनिया वाक़ई में आगे बढ़ गई है, किसी का सुख हो या दुख हो, राग हो, विराग हो, जन्म हो या मृत्यु, हर भाव की ख़रीद-फ़रोख़्त करना जान गई है, हर चीज़ से एक नया बिज़नेस खड़ा करना जान गई है।
कभी-कभी सोचती हूँ कितने सारे इतवार मिलाने होंगे कि पहले जैसा इतवार बन पाये।
रिमझिम फुहार अपार्टमेंट के स्लाइडिंग खिड़कियों से लौट के ना जा पाये।
दोस्तों को कॉल करके ना मिलना पड़े, और, फ़ुरसत में चाय बनाई जाए
किसी पे खर्चा गया विश्वास ज़ाया ना जाने पाये,
‘मैं खुश हूँ’ ‘सब ठीक है’ का नाटक ना खेला जाए।