” शोखियाँ हैं , इन ईशारों में ” !!
मस्ती में डूब कर ,
रंग कितने बिखेरे हैं !
जब मुस्कराये तुम ,
छंट गये अँधेरे हैं !
रौशनी लहरा गयी है –
इन नज़ारों में !!
बहारें लद गयी ,
ऋतुओं की मेहरबानी !
निमंत्रण मूक सा है ,
यों पसरी है जवानी !
भुजपाश में निज के बंधी –
या बाँधा नज़ारों ने !!
खो गये सुधबुध ,
निरखते हैं तुम्हीं को !
आसमां की टकटकी ,
अचंभित है जमीं तो !
भूल सब अब लौट आओ –
बांहों के सहारों में !!