शोक गीत
मै चिल्लाई बहुत चिल्लाई
या खुदा जो नजरों मे मेरी फ़वता नहीं
नजरों से मेरी उसे काफूर कर
मुझे हुस्नो तकदीर से नवाज़ा ही है
तो बस अपनी ही अना मे महफूज़ कर
अय्यार जितने भी है मेरे इर्द गिर्द
या तो उनको हटा दे मेरे दायरे से
या मुझको उनकी महफिल से दूर कर
दरीचों से झांककर जब ख्बाव मे देखा कभी
खामोश अंधेरों मे भी उनकी ही शक्ल अब आती नज़र
मेरे नामाकूल हमदर्द रहे मेरे पास सदा
मुझे कयामत के आने तक महफूज़ कर
सुकूं मेरा है वो आंसू ,जो छलके आंख से उसकी
जो महफिल मे छिपाकर दर्द मुस्कुराने की अदा जाने
न आया तरस दुनिया को ,न मेरी दुआये कूबूली गयी
न खुदा ने इल्तिजा मानी न रब़ मेरी दुआ माने…
प्रियंका मिश्रा_प्रिया