शैतान मन
शैतान मन
जब तक मन में है शैतानी।
तब तक वृत्ति अशुभ की रानी।।
मन में खुराफात बसता है।
गलत काम उत्तम लगता है।।
अधम समझ का निर्माता है।
गंदी भाषा व्याख्याता है।।
विघटन ही है बड़ा मुखौटा।
इस दुनिया का सिक्का खोटा ।।
इसको केवल भोग चाहिए।
घृणित भावना योग चाहिए।।
करता रहता है मनमाना।
दुखद जगत का है दीवाना।।
इसका जीवन सदा विलासी।
सम्वेदनाशून्य अधिशासी।।
फैलाता है दूषित माया।
दयाहीन अति निर्मम काया।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्रा वाराणसी।