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30 Dec 2018 · 1 min read

मुक्तक

देश के जो भी ——-परस्तार बने बैठे हैं
ये फ़क़त कुर्सी —-के दिलदार बने बैठे हैं

धर्म की आँड़ में हम सबको लड़ाते हैं जो
मेरी नज़रों में ———वो ग़द्दार बने बैठे है

प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)

Language: Hindi
182 Views
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