शेर
क्यूँ नफ़रत के बीज दिल में बोया है आपने
हमें अश्कों के समंदर में डुबोया है आपने
(2)
क्यूँ यकीं आता नही मेरी वफाओं पे तुझे
तेरा ही नाम लेता हूँ मैं तो खुदा से पहले
(3)
हिन्दू मरता है न मुसलमां देता है शहादत
वतन परस्त ही कुरबान होता है वतन के लिये
(4)
हुस्न वालों का जब भी ख़याल आया है
जख़्म दिल का पुराना फिर उभर आया है
(5)
इक दिन बहार बनकर वो आई थी घर मेरे
खुश्बू से उसके आज़ भी मिरा घर महकता है